Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 76
________________ चिंतिअत्थकरो= इच्छित वस्तु (कामना) को पूर्ण करने वाला, चिंतामणी चिंतामणि रत्न, मणीणं समस्त मणियों में, सिरोमणी= श्रेष्ठ है। (78) तत्तो= तब, सो= वह (व्यापारी), तस्स= उस चिंतामणि के, कए = निमित्त से, णेगठाणेसु= अनेक स्थानों में, खाणीउ= खानों को, खणेइ= खोदता है, तह वि= फिर भी, विविहेहि= अनेक प्रकार के, उवायकरणेहिं= उपायों को करने से (भी), स= उसे, मणी- मणि, न पत्तो प्राप्त नहीं होती। (79) (तब) केण वि= किसी के द्वारा, भणिअं= कहा गया (तुम), वहणे= जहाज पर, चडिऊण= चढ़कर, रयणदीवम्मि= रत्नद्वीप को, वच्चसु= जाओ, तत्थ= वहाँ, आसपूरी देवी आशापूरी देवी, अत्थि- है (वह) तुह= तुम्हें, वंछियं= इच्छित वस्तु, दाही = देगी। (80) तो= तब (वह व्यापारी), तत्थ= वहाँ, रयणदीवे= रत्नद्वीप में, संपत्तो पहुँचा, इक्कवीसखवणेहिं= 21 व्रतों की, आराहइ= आराधना द्वारा, तं= उस आशापूरी, देविं= देवी को, संतुट्ठा= संतुष्ठ किया, सा= वह देवी, इमं= इस प्रकार, भणइ= कहती है। (81) भो भद्द = हे महानुभाव, अज्ज= आज, केण= किस, कज्जेण= कार्य से, तए = तुम, अहयं= अत्यधिक, आराहिआ= आराधना करते हो, सो= वह (व्यापारी), भणइ कहता है, देवि= हे देवी, चिंतामणीकए = चिंतामणि रत्न के लिए, एसो= यह, उज्जमो= उद्यम (है) (82) देवी-देवि, भणेइ= कहती है, भो-भो= अरे! अरे!!, (भद्रपुरुष), तुहं= तुम्हारे, कम्ममेव= कर्म ही, सम्मकरं= अच्छे/शुभ करने योग्य, नत्थि= नहीं हैं, जेण= क्योंकि, सुरा वि= देवती भी, कुम्माणुसारेणं= कर्मों के अनुसार, धणाणि= धन, अप्पन्ति= अर्पित करते हैं/ देते हैं। (83) सो= वह (व्यापारी), भणइ= कहता है, जइ= यदि, मह= मेरे, कम्म= कर्म (शुभ) हवेइ= होते , तो-तो, तुज्झ= तुम्हारी, कीस क्यों, सेवामि= सेवा करता, तं= इसलिए, मज्झ= मुझे, रयणं- रत्न, देसु= दें, पच्छा= बाद में, जं= जो, होउ हो, तं= वह, होउ हो। सिरिकम्मापुत्तचरिअं 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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