Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
View full book text
________________
(197) इअ = इस प्रकार, बहुअनरो= अनेक व्यक्तियों को, बोहिओ= समझाते हुए केवलिप्पवरो= श्रेष्ठ केवली, स= वह, कुम्मापुत्तो= कूर्मापुत्र, सुचिरं= दीर्घकाल तक, केवलिपरियायं= केवली की अवस्था को, पालिऊण= पूर्ण करके, सिवं= मोक्ष को, पत्तो= प्राप्त हुआ।
(198) जो= जो, भविओ= भव्यपुरुष, वेरग्गकरं= वैराग्य को उत्पन्न करने वाले, कुम्मापुत्तचरित्तं= कूर्मापुत्र के चरित्र को, सुणेइ= सुनता है, सो= वह, सव्वपावरहिओ= समस्त पापों से रहित, अणंतसुहभायणं= अनंतसुख देने वाले भाव धर्म को, वहइ= धारण करता है।
(199) सिरिहेमविमलो= श्री हेमविमल के, सुहगुरु = शुभ (मंगलमय) आचार्य, सिरिजिणमाणिक्कसीसरइएणं= श्री जिनमाणिक्य के शिष्य (अनन्तहंस) द्वारा, एअं= यह , पगरणं= प्रकरण, रइअ= रचा गया, वाइज्जंतं= वांचे जाते हुए, चिरं= अनंतसमय तक, जयउ= जय हो।
सिरिकुम्मापुत्तचरिअं.
75
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org