Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 84
________________ (125) उल्लावणेण= बुलाने के लिए, कुम्मापुत्तु= कूर्मापुत्र, त्ति= ऐसा, अवरनामदूसरा नाम, पइट्ठिअं= रखा गया, इअ= इस प्रकार, तस्स= उसके, दुन्नि= दोनों, सत्थयाइं= सार्थक (उचित), नामाइं= नाम, पसिद्धाइं= प्रसिद्ध हो गये। (126) पंचहि= पाँच, धाईहिं= धाई माताओं द्वारा, हत्था= हाथ (के बीच में), हत्थम्मि= हाथों पर, अंकओ= उत्संग पर (वक्षस्थल पर, तथा), अंके= गोद में, गिहिज्जंतो= लिया जाता हुआ, सो= वह, कुमरो= कूर्मापुत्र, सव्वेसिं= सभी (लोगों) में, वल्लहो= प्रिय, जाओ= हो गया। (127) सबुद्धीए = तीक्ष्ण बुद्धि के द्वारा, सयमेव= स्वयं ही, बावत्तरि= बहत्तर, कलाओ= कलाओं का, अहिज्जए = अभ्यास करता है, य = और, तत्थवहाँ, अज्झावओ= अध्यापक, णवरं= मात्र (का), सक्खित्तं साक्षी, संपत्तो हो गया। (128) तु= वह, किं= कैसा (था), पुव्वभवंतरं= पूर्व जन्म में, चेडबंधणं सेवकों एवं मित्रों को, उच्छालणाइ= उछालने के, कय = किए गए, कम्मवसा= कर्मों के कारण, सो= वह कूर्मापुत्र, दुहत्थदेहप्पमाणधरो= दो हाथ के बराबर शरीर धारण करने वाला, वामणओ= बौना (जिसके हाथ-पैर छोटे तथा छाती और पेट उन्नत हो या ठिगना) जाओ= हो गया। (129) निरूवमरूवगुणेण= अनुपम रूप और गुणों से, तरुणीजणमाणसाणि= तरुणियों के और मनुष्यों के (मन को), मोहिंतो= आकर्षित (मोहित) करता हुआ, सोहग्गभग्गजुत्तो= सौभाग्य और भाग्य से युक्त, सो= वह कुमार, कमेण= क्रमशः, जुब्वणं= युवावस्था को, पत्तो= प्राप्त हुआ। (130) तारुण्णे= युवावस्था में, सव्वेसिं= सभी व्यक्तियों में, बहुप्पगारा= अनेक प्रकार के, विसयविगारा= विषय-विकार, (उत्पन्न होते हैं) पुणवि= फिर भी, मुणियतत्तो= तत्त्वों को जानने वाला, सो= वह कूर्मापुत्र, विसयविरत्तो= विषयों से विरक्त (हो गया) सिरिकुम्मापुत्तचरिअं 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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