Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
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(174) जइआ= जिस समय, कुम्मापुत्तो= कूर्मापुत्र, सयं= स्वयं से, तुम्हाण= तुम सबको, महसुक्कं= महाशुक्र, मंदिरं= मंदिर नाम के स्वर्ग के (विषय में) कह= कहेगा, तइआ= उस समय, चेव= ही, भो हे महानुभाव (आपको), केवलं- केवलज्ञान, अत्थि= होगा।
(175) इअ= इस प्रकार, सुणिअं= सुनकर, मुणिअतत्ता= तत्त्वों को जानने वाले, तिगुत्तिगुत्ता= तीनों गुप्तियों (मन, वचन व काय) से युक्त, जिणं= जिनेन्द्र भगवान् को, नमंसित्ता= नमस्कार करके, तस्स= उनके, समीवे= पास में, पत्ता= पहुँचे (वे सभी), चउरो= चारों (चतु) , तुसिणीआ= मौन होकर, चिट्ठन्ति= बैठ गए।
(176) ताव= तब, ते= वे (चारण मुनि), तेण = उससे (चक्रवर्ती देवादित्य) से, वुत्ता कहते हैं, भद्दा= हे महानुभाव, जिणेण= जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा, तुज्झं= आपको, समणुभूअं= अच्छी तरह अनुभव किए गए , महसुक्के= महाशुक्र नामक, मंदिरविमाणसुक्खं= मंदिर विमान के स्वर्ग के सुख को, नो= नहीं, कहिअं= कहा गया है।
(177) इअ = इस प्रकार के, वयणसवणेण= वचनों को सुनकर, संजायजाइसरणेण= उत्पन्न जाति स्मरण से (तथा), पुव्वजम्मा= पूर्वजन्म के, संभरिया= स्मरण से, चउरो= चारों, चारणा= वे चारण मुनि, खवगस्सेणिं= क्षपक श्रेणी पर आरूढा= आरूढ़ हो गए।
(178) अण= अनन्तानुबन्धी(कोध,मान,माया,लोभोमिच्छ मिथ्यात्व, सम्म= सम्यक्त्व मोहनीय, मीस मिश्र मोहनीय, अट्ठ= आठ कषाय (क्रोध,मान,माया व लोभ अप्रत्याख्यान एवं कोध, मान, माया, लोभ प्रत्याख्यान), पुंसित्थिवेय नपुंसकवेद, स्त्रीवेद एवं, पुमवेअं= पुरुषवेद, च और, छक्क= छह (हास्य, रति, अरति, शोक, भय एवं जुगुप्सा) तथा, कोहाईए संजलणे= क्रोध आदि संज्वलन कषाय (इन 28 प्रकृतियों) को, खवेई क्षय करता है। सिरिकुम्मापुत्तचरिअं
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