Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
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तत्र चावसरे - तिहां वज्जइ तूर सुतडयडंत गयणंगणि गज्जइ गडयडंत। वरमंगलमुंगलमेरिनाद नफेरी सुणीइ नवनिनाद ।। 122 ||
और उसी अवसर पर - अर्थ : वहाँ अत्यंत तड़-तड़ की आवाज करने वाला तूर्य (तुरही) वाद्य
बजने लगा। आकाश स्थान (प्रांगण) में गड़-गड़ की गर्जना होने लगी। शुभ मंगल (रूप) भुंगल नाम के वाद्य विशेष का भेरीनाद (होने लगा, और) नफेरी नाम के वाद्य की नूतन आवाज सुनाई देने लगी।
विरुदावलि बोल्लइ बंदिवृंद, चिरकालचतुर नरनंदवृंद।
वरकामिणी नच्चइ अइसुरम्म, इअ उच्छव हूओ पुत्तजम्म।। 123 ।। अर्थ : अनेक भाट स्तुति गाने लगे, चतुर मनुष्यों के समूह अखण्ड आनंद
(लेने लगे)। सुंदर रमणियाँ अत्यंत मोहक नृत्य करने लगीं, इस तरह पुत्र-जन्म का उत्सव हुआ।
अम्मापिऊहि तस्स य धम्मस्सुयदोहलानुसारेण ।
नामं गुणाभिरामं पइट्ठिअं धम्मदेवु त्ति।। 124 || अर्थ : धर्म सुनने के दोहद के अनुसार माता-पिता के द्वारा उसका (पुत्र
का) गुणों से सुशोभित "धर्मदेव' ऐसा नाम रखा गया।
उल्लावणेण कुम्मापुत्तु त्ति पइट्ठिअं अवरनामं ।
इअ तस्स सत्थयाइं दुन्नि पसिद्धाइं नामाइं।। 125 ।। अर्थ : बुलाने के लिए "कूर्मापुत्र" ऐसा दूसरा नाम रखा गया। इस प्रकार
उसके दोनों सार्थक (उचित) नाम प्रसिद्ध हो गए।
सो पंचहि धाईहिं हत्था हत्थम्मि अंकओ अंके।
गिण्हिज्जंतो कुमरो सव्वेसिं वल्लहो जाओ।। 126 || अर्थ : पाँच धाई–माताओं द्वारा हाथों के बीच में, हाथों पर, उत्संग पर
(वक्षस्थल पर तथा) गोद में लिया जाता हुआ वह कूर्मापुत्र सभी
(लोगों) में प्रिय हो गया। 26
सिरिकुम्मापुत्तचरिअं
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