Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ (18) आउखए= आयु के पूर्ण होने पर, (मैं), इत्थ=इस, वणे वन में, भद्दमुही नाम= भद्रमुखी नाम की,(यक्षिणी हुई थी, किन्तु) मममेरा भत्ता पति, कं=किस, गइमुववन्नो गति में उत्पन्न हुआ है, णाह हे नाथ, आइससु-आदेश करें (बताएँ)। (19) तओ तब, सुलोयणो नाम सुलोचन नाम के, केवली-केवली (मुनि), महुरवाणीए =मधुर वचनों द्वारा, भणइ कहते हैं, भद्दे हे भद्रे!, निसुणसु-सुनो, तुज्झ=तुम्हारा, पिओ=प्रिय (पति), इत्थेव=इस ही, नयरे नगर में, होणनरवइस्स द्रौण राजा का, सुओ-पुत्र, सुदुल्लहो अत्यंत दुर्लभ, दुल्लहो-दुर्लभ कुमार, नाम-नाम का, उप्पन्नो उत्पन्न हुआ है। (20) तं-उसे, निसुणिअ-सुनकर, हिट्ठा हर्षित (और), भद्दमुही=भद्रमुखी, नाम= नाम की, जक्खिणी यक्षिणी, माणवईवधरा= मानवती का रूप धारण करके, कुमरसमीवम्मि कुमार के समीप में, संपत्ता= पहुंची। (21) बहुकुमरं बहुत से बालकों को, उच्छालणं= उछालने में, इक्कतल्लिच्छं= एकाग्रचित्त (एवं) तल्लीन, तं-उस, कुमारं कुमार को, दळूण देखकर (और), हसिऊणं-हँसकर, सा=वह यक्षिणी, जंपइ= कहती है, इणेणं इन, रंकेणं गरीब/भोले बालकों से, रमणेणं मनोरंजन करने से, किं क्या प्रयोजन। (22) ताव-तब, जइ-यदि, तुज्झ-तुम्हारा, चित्तं चित्त, विचित्तचित्तम्मि=विचित्र प्रकार के आश्चर्य में, चंचलं चंचल, होइ होता है, ता=तो, मज्झ= मेरे, अणुधावसु-पीछे आओ, इणं-इस, वयणं= वचन को, सुणिअ सुनकर, सो-वह, कुमरो राजकुमार। (23) तव्वअणं उसके वचनों को (सुनकर), कुऊहलाकुलिअचित्तो= कौतूहल युक्त चित्त वाला (वह कुमार), तं-उस, कण्णं कन्या (यक्षिणी)के. अणुधावइ पीछे जाता है, सा= वह यक्षिणी, विभी, हु–वास्तव में, तप्पुरओ= शीघ्र ही, तं-उसे, निअवणं अपने उद्यान (भवन) को, नेइले जाती है। सिरिकुम्मापुत्तचरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110