Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 68
________________ (30) अज्ज आज, मए =मैंने, चिरेणकालेण=बहुत समय बाद, अज्जुमए नाह= ऋजुमति अपने आर्य (पति) को, दिट्ठो देखा है, (इसलिए मैं) निअकज्जे= अपने कार्य से, तुम= तुम्हें, सुरभिवणे= सुगन्धित वन में (बने), सुरभवणे= इस देव भवन में, आणिओ= लायी हूँ। (31) अज्जं चिअ= आज ही, मज्झ=मेरे, मणोमणोरहो= मन का मनोरथ कप्पपायवो कल्पवृक्ष, फलिओ-फल देने वाला हुआ है, जंजिससे, सुकय = अच्छी तरह किए गए, सुकयवसओ-पुण्य के वश से, अज्ज आर्य, तुम तुम, मज्झ-मुझे, मिलिआ मिले हो। विशेष – 'सि' पादपूर्ति के रूप में आया है। (32) इय= इस प्रकार, वयणं= वचन को, सोऊणं= सुनकर (और), तीसे= उसके, सुनयणं= सुन्दर नेत्रों वाले, वयणं मुख को, दद्दूण= देखकर, तस्स= उस (राजकुमार) के, मणम्मि मन में, पुन्वभवस्स= पूर्व भव का, सिणेहो= स्नेह, समुल्लसिओ= उत्पन्न (उल्लसित) हो गया। (33) कत्थ वि= कहीं पर भी, एसा= इसे, दिट्ठा= देखा है, य= अथवा, पुव्वभवे= पूर्व भव में, एयस्स= इसका, परिचिआ= परिचय था, इय= इस प्रकार के, ऊहापोहवसा ऊहापोह के वश से (राजकुमार को), जाईसरणं= जाति-स्मरण, समुप्पण्णं= उत्पन्न हो गया। (34) जाइसरणेण= जाति स्मरण से, नाऊणं= जानकर, तेणं कुमरेणं= उस कुमार के द्वारा निअपियाइ= अपनी प्रिया (यक्षिणी) के, पुरओ=सामने, समग्गो वि= समस्त, पुव्वजम्मवुत्तंतो= पूर्व जन्म का वृत्तान्त, कहिओ= कह दिया गया। (35) तत्तो= तब, नियसत्तीए =अपनी शक्ति से (यक्षिणी ने), अशुभाणं अशुभ, पुग्गलाणं-पुदगलों का (पदार्थों का), अवहरणं अपहरण करके, तस्सरीरम्मि= उसके शरीर में, सुभपुग्गलं= शुभ पुद्गलों (पदार्थों) को, पक्खेवं= प्रेक्षित (आरोपित) करके, सुरी= देव जैसे सुख योग्य (भोगने योग्य), करिअ= बनाया। सिरिकुम्मापुत्तवरिअं 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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