Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
View full book text
________________
(59) (यह) जीयं= जीवन, सुरचाउ ब्व= इंद्र धनुष के समान, चंचलं= चंचल है, विज्जुलेहेव= विद्युत की चमक की तरह, चंचलं चंचल (क्षणिक) है, पायावलग्ग= पैरों में लगी हुई है, पंसुव्व= धूल के समान, अथिर अस्थिर (अनित्य), धम्मयं= धर्म/स्वरूप वाला है।
(60) नाह= हे नाथ!, एएण= इसी, कारणेणं कारण से, अहं= मेरा, सरीरा शरीर, दुक्खसल्लिया= दुःख से पीड़ित है, विहिविलसिअम्मि= विधि (दैव) की लीला की, वंके= विचित्रता में, (मैं), तुह= तुम्हारे, विरह-विरह को, कह कैसे, सहिस्सामि सहन कर सकूँगी ।
(61) कुमरो= दुर्लभ कुमार, जंपइ कहता है, जक्खिणी= हे यक्षिणी, हिअअमज्झम्मि= (अपने) हृदय में, खेअं= खेद, मा मत, कुणसु-करो, (क्योंकि) जलबिन्दुचंचले= जलबिन्दु के समान चंचल (इस), जीविअम्मि= जीवन को, थिरत्तं= स्थिर, को= क्यों, मन्नइ= मानती हो।
(62) जइ-यदि, मज्झुवरि= मेरे ऊपर (तुम), सिणेहं= स्नेह, धरेसि= धारण करती हो, तातो, पाणपिए = हे प्राणप्रिये !, मं=मुझे, केवलिस्स= केवली के पासम्मि= पास में, मुंचसु= छोड़ दो, जेण= जिससे (मैं) अप्पणो= आत्म (स्वयं का), कज्जं= कल्याण (कार्य), करेमि= करता हूँ।
(63) तो= तब, तीइ= उस यक्षिणी की, ससत्तीए = अपनी शक्ति से, कुमरो= वह दुर्लभ कुमार, केवलिपासम्मि= केवली के पास में, पाविओ= पहुँच गया, केवलिणं= केवली को, अभिवंदिअ= अभिवादन कर, जहारिहं= यथायोग्य, अट्ठाणं-स्थान, आसीणो= ग्रहण किया।
(64) अह-इसके बाद, तत्थ वहाँ पर, ठिआ= स्थित (बैठे हुए), मायतायमुणी माता-पितारूप वे मुनि, चिरेण=बहुत समय बाद, तं कुमरं उस कुमार को अवलोइऊण देखकर, पुत्तस्स= पुत्र के, सिणेहेणं= स्नेह से, रोइउं= रोने के लिए, पवत्ता= प्रवृत्त/तैयार हुए। 52
सिरिकुम्मापुत्तचरि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org