Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 71
________________ से रहित चित्त वाले, य =और, तिगुत्तिगुत्ता तीन गुप्तियों से रक्षित, (मन वचन व कायरूप त्रिगुप्ति से सुरक्षित) वे मात-पितारूप मुनि, विहरन्ति-विचरण करते हैं। (48) अण्णदिणे अन्य किसी दिन, गामाणुग्गामं गाँव-गाँव में, विहरन्तओ विचरण करता हुआ, सो=वह, नाणीज्ञानी (साधु), तत्थे व= उसी, दुग्गिलवणे दुर्गिलनाम के उद्यान में, तेहि उनके (माता-पिता रूप मुनि के) संजुत्तो सहित समोसढो आया। (49) अह इसके बाद, जक्खिणी यक्षिणी (अपने), अवहिणा= अवधिज्ञान से, कुमरस्साउं=कुमार की आयु को, थोवं अल्प, विआणिउं=जानकर, भत्तिसंजुत्ता भक्ति पूर्वक, कयंजली हाथ जोड़कर, तं-उस, केवलिणं केवली को, पुच्छइ-पूछती है। (50) भयवं हे भगवन्!, जीवियमप्पं अल्प जीवन की, भवढेउं संसार में वृद्धि करने के लिए, कहमवि=किसी तरह भी (कोई) तीरिज्जएइ-समर्थ है, तो तब, केवलकलिअत्थवित्थारो= केवलज्ञान से विकसित अर्थ के विस्तार को (जानने वाले), केवली-केवली, कहइ कहते हैं। (51) तित्थयरा= तीर्थकर, गणधरा= गणधर, चक्कधरा=चक्रवर्ती, सबलवासुदेवा बलराम (राम) तथा वासुदेव (श्रीकृष्ण), अइबलिणो= अत्यधिक बलवान होने पर, विभी, आउस्स-आयु को, संधाणं जोड़ने/वृद्धि, काउं-करने के लिए, सक्का समर्थ, न नहीं हैं। (52) जेजो , पहू= प्रभू (ईश्वर), जम्बुद्दीवं-जम्बुद्वीप को, छत्तं छत्र (और), मेरुं=मेरु पर्वत को (इस छत्र का), दंडं-दण्ड, करेउं करने के लिए (समर्थ हैं), ते वे, देवा देवता, वि=भी, आउस्स आयु को, संधाणं जोड़ने/वृद्धि, काउं करने के लिए, सक्का समर्थ, न नहीं हैं। (53) नो-न, विद्या विद्या, न=न, भेषजं औषधि, न=न, पिता-पिता, नो–न, बान्धवा मित्र, नो–न, सुताः पुत्र, नाभीष्टा=न पूज्य, कुलदेवता कुलदेवता न-न, स्नेहानुबन्धान्बिता- स्नेह के बन्धन से बन्धी हुई, जननी माता, 50 सिरिकुम्मापुत्तचरिअं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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