Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
View full book text
________________
(12)
सुकुमारो= अत्यन्त सुकुमार, रम्मरूवजियमारो सुन्दर रूप में कामदेव को जीतने वाला, गुणमणिभण्डारो= गुणरूपी मणियों का भण्डार, (और), बहुजणाधारो बहुत से लोगों का आधार, दुल्लभणामकुमारो दुर्लभ नामका राजकुमार, तेसिं-उनका, सुओ-पुत्र, त्थि था।
(13) नियजुव्वण अपने यौवन के (तथा), राजमएणं= राजमद के, परे वशीभूत हो, सो कुमरो= वह राजकुमार, बहुकुमारे= बहुत से कुमारों (बच्चों) को, कंदुकमिव गेंद की तरह, गयणतले = आकाश की ओर,उच्छलिंतो-उछालता हुआ, सया सदा, रमई खेलता था।
(14) अण्णदिणे=किसी अन्य दिन में, दुग्गिलाभिहाणम्मि=दुर्गिल नाम के, तस्स-उस, पुरस्सुज्जाणे नगर के उद्यान में, सुगुरु =विद्वान्, सुलोयणणामा-सुलोचन नामके, एगो=एक, केवली केवली(मुनि), समोसढो=आए।
(15) तत्थुजाणे-उसी उद्यान में, निच्चं हमेशा, निवसए =निवास करने वाली, भद्दमुहीनाम= भद्रमुखी नाम की, जक्खिणी= यक्षिणी, बहुसालक्खं बहुशाल नामक, वडडुम= वट वृक्ष के, अहिठिअं= नीचे वाले, भवणम्मि= भवन में, कयवासा= अपना आवास किए थी।
(16) केवलकमलाकलियं केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी से सुशोभित, संसयहरणं= संशय को हरण करने वाले, सुलोअणं सुगुरू = सुलोचन नाम के गुरु को, भक्तिभरेणं भक्तिपूर्वक, पणमिय =प्रणाम करके, सा वह, जक्खिणी= यक्षिणी, एवं इस प्रकार, पुच्छइ-पूछती है।
(17) भयवं हे भगवन्, हं= मैं, पुन्वभवे= पूर्व भव में, माणवई= मानवती, नाम नाम की, माणवी-मानवी, आसी थी (मैं भोगों को), परिभुग्गा= पुनः पुनः (बार-बार) भोगने हेतु, सुवेलवेलंधरसुरस्स= सुवेलवेलंधर देव की, पाणपिया पत्नी हुई थी। 44
सिरिकुम्मापुत्तचरिअं ।
205500020566666666666666666666056
38888888888888 53086608603300388888888888250283025220222222
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org