Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
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कुम्मापुत्तचरित्तं वेरग्गकरं सुणेइ जो भविओ।
सो सव्वपावरहिओ अणंतसुहभायणं वहइ।। 198।। अर्थ : जो भव्य पुरुष वैराग्य को उत्पन्न करने वाले कूर्मापुत्र के चरित्र
को सुनता है, वह समस्त पापों से रहित अनन्त सुख (देने वाले) भावधर्म को धारण करता है।
सिरिहेमविमलसुहगुरुसिरिजिणमाणिक्कसीसरइएणं ।
रइअ पगरणमेअं वाइज्जंतं चिरं जयउ ।। 199 ।। अर्थ : श्री हेमविमल के शुभ मंगलमय आचार्य श्री जिनमाणिक्य के शिष्य
(अनन्तहंस) द्वारा यह प्रकरण रचा गया। वांचे (पढ़े) जाते हुए अनन्त समय तक जयशील हो।
"इति कूर्मापुत्रचरित्रं समाप्तं"
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सिरिकुम्मापुत्तचरि
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