Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 43
________________ जाए पभायसमए सयणिज्जा उट्ठिऊण सा देवी। रायसमीवं पत्ता जंपइ महुराहि वग्गूहिं।। 102 || अर्थ : प्रातःकाल होने पर बिस्तर से उठकर वह रानी राजा के पास पहुँची (और) मधुर वचनों द्वारा कहती है। अज्ज अहं सुरभवणं सुमिणम्मि पासिऊण पडिबुद्धा। एअस्स सुमिणगस्स य भविस्सई को फलविसेसो।। 103 || अर्थ : आज मैं स्वप्न में देवभवन को देखकर जागी हूँ, इस स्वप्न का विशेष परिणाम क्या होगा? इअ सुणिय हट्टतुट्ठो राया रोमंचअंचिअसरीरो। निअमइअणुसारेण साहइ एआरिसं वयणं।। 104 || अर्थ : यह सुनकर हर्ष और आनन्द से रोमांचित शरीर वाला (वह) राजा अपनी बुद्धि के अनुसार इस प्रकार के वचनों को कहता है देवि तुमं पडिपुण्णे नवमासे सड्ढसत्तदिणअहिए। बहुलक्खणगुणजुत्तं पुत्तं पाविहिसि जगनेत्तं ।। 105 ।। अर्थ : हे देवी! नौ माह (और) 7.5 दिन से अधिक (समय) के पूर्ण होने पर तुम अनेक लक्षणों एवं गुणों युक्त जगत् के लिए नेत्र रूप पुत्र को प्राप्त करोगी। इअ नरवइणो वयणं सुणिऊणं हट्टतुट्ठनिअहियया। नरनाहअणुन्नाया सा जाया नियगिहं पत्ता।। 106 || अर्थ : इस तरह राजा के वचन सुनकर हर्षित व आनंदित अपने हृदय वाली वह (रानी) राजा की आज्ञा को प्राप्त करके अपने घर को पहुँची। तत्थ य कुमारजीवो देवाउं पालिऊण कुम्माए। उअरम्मि सुकयपुण्णो सरम्मि हंसु व्व अवइण्णो।। 107 ।। सिरिकुम्मापुत्तचरि 22683525506628253062355626033552800058 29828898388888888888 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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