Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
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अज्झत्थं सव्वओ सव्वं, दिस्स पाणे पियायए । न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए ॥ ६ ॥ आदाणं नरयं दिस्स, नायएज्ज तणामवि । दोगुच्छी अप्पणो पाए, दिन्नं भुंजेज भोयणं ॥ ७ ॥ इहमेगे उ मन्नन्ति, अपच्चक्खाय पावगं । आयरियं विदित्ताणं, सबदुक्खाण मुच्चए ॥ ८ ॥ भणंता अकरेन्ता य, बन्धमोक्खपइण्णिणो। वायाविरियमेत्तेण, समासासेन्ति अप्पयं ॥९॥ न चित्तातायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं । विसन्ना पावकम्मेहि, बाला पंडियमाणिणो ॥ १० ॥ जे केइ सरीरे सत्ता, वण्णे रुवे य सव्वसो। मणसा कायवक्केणं, सव्वे ते दुक्खसम्भवा ॥ ११ ॥ आवन्ना दीहमद्धाणं, संसारम्मि अणन्तए। तम्हा सव्यदिसं पस्सं, अप्पमत्तो परिचए ॥ १२ ॥ बहिया उड्ढमादाय, नावकंखे कयाइ वि । पुव्वकम्मक्खयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे ॥ १३ ॥ विविच्च मम्मुणो हेउं, कालकंखी परिव्वए। मायं पिंडस्स पाणस्स, कडं लक्षूण भक्खए ॥ १४ ॥ सन्निहिं च न कुव्वेजा, लेवमायए संजए। पक्खीपत्तं समादाय, निखेक्खो परिव्वए ॥ १५ ॥ एसणासमिओ लज्जू, गामे अणियओ चरे। अप्पमत्तो पमत्तेहिं, पिण्डवायं गवेसए ॥ १६ ॥ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियालिए
इअ खुड्डागनियंटिज छर्ट अज्झयणं समत्तं ॥ ६ ॥
॥ अह एलयं सत्तमं अज्झयणं ॥ जहाएसं समुद्दिस्स, कोइ पोसेज एलयं । ओयणं जवसं देज्जा, पोसेजावि सयङ्गणे ॥ १ ॥ तओ से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे। पीणिए विउले देहे, आएसं परिक्खए ॥ २ ॥ जाव न एइ आएसे, ताव जीवइ सो दुही । अह पतम्मि आएसे, सीसं छत्तूण भुजई ॥ ३ ॥ जहा से खलु उरभे, आएसाए समीहिए। एवं बाले अहम्मिटे, ईहई नरयाउयं ॥ ४ ॥ हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणंसि विलोकए । अन्नदत्तहरे तेणे, माई कं नु हरे सढे ॥५॥ इत्थीविसयगिद्धे य, महारंभपरिग्गहे । भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे ॥ ६॥ अयकक्करभोई य, तुंडिल्ले चियलोहिए। आउयं नरए कंखे, जहाए व एलए ॥ ७॥ आसणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुंजिया । दुस्साहडं धणं हिच्चा, बहुं संचिणिया रयं ॥ ८ ॥ तओ कम्मगुरू जंतू, पच्चुप्पन्नपरायणे । अए ब आगयाएसे, मरणंतम्मि सोयई ॥ ९ ॥ तओ आउपरिक्खीणे, चुया देहा विहिंसगा। आसुरीयं दिसं वाला, गच्छन्ति अवसा तमं ॥ १० ॥ जहा कागिणिए हेडं, सहस्सं हारए नरो । अपच्छं अम्बगं भोच्चा, राया रजं तु हारए ॥ ११ ॥ एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अन्तिए । सहस्सगुणिया भुज्जो, आउं कामा य दिग्विया ॥ १२ ॥ अणेगवासानउया, जा सा पन्नवओ ठिई। जाणि जीयन्ति दुम्मेहा, ऊणवाससयाउए । १३ ।। जहा य तिन्निवाणिया, मूलं घेतूण निग्गया। एगोऽत्थ लहई लाभं एगो मूलेण आगओ ॥ १४ ॥ एगो मूलं पि हारित्ता, आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह ॥ १५ ॥ माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ॥ १६ ॥ दुहओ गई बालस्स, आवई वहमूलिया । देवत्तं माणुसत्तं च, जं जिए लोलयासढे ॥ १७ ॥
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