Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-पंचमाध्ययनम् कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु। दुइओ मलं संचिणइ, सिंमुणागु व्व मट्टियं ॥ १० ॥ तओ पुट्ठो आयंकेणं, गिलाणो परितप्पई । पमीओ परलोपस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो ।। ११ ॥ मुया मे नरए ठाणा, असीलाणं च जा गई। बालाणं कुरकम्माणं, पगाढा जत्थ वेयणा ॥ १२ ॥ तत्थोवाइयं ठाणं, जहा मेयमणुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गछन्तो, सो पच्छा परितप्पई ॥१३॥ जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा महापहं । विसमं मग्गं ओइण्णो. अक्खे भग्गम्मि सोयई ॥ १४ ।। एवं धम्म विउक्कम्मं, अहम्मं पडिवजिया । बाले मच्चुनुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयई ॥ १५ ॥ तओ स मरणन्तम्मि, बाले संतसई भया । अकाममरणं मरई, धुत्ते व कलिणा जिए ॥ १६ ॥ एयं अकाममरणं, बालाणं तु पवेइयं । एत्तो सकाममरणं, पण्डियाणं सुणेह मे ॥ १७ ॥ मरणं पि सपुण्णाणं, जहा मेयमणुस्सुयं । विप्पसण्णमणाघायं, संजयाण वुसीमओ ॥ १८॥ न इमं सव्वेमु भिक्खूसु,न इमं सव्वेसुगाविसु। नाणासीलाअगारत्था,विसमसीला य भिक्खूणो॥ १९॥ सन्ति एगेहिं भिक्खूहि, गारत्था संजमुत्तरा। गारत्थेहि य सव्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा ॥ २० ॥ चीराजिणं नगिणिणं, जडी संघाडिमुण्डिणं । एयाणि वि न तायन्ति, दुस्सीलं परियागयं ॥ २१ ॥ पिंडोल एव्व दुस्सीले, नरगाओ न मुच्चई। भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं ॥ २२ ।। अगारिसामाइयंगाणि, सड्डी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं न हावए ॥ २३ ।। एवं सिक्खासमावन्ने, गिहिवासे वि सुव्वए । मुच्चई छविपव्वाओ, गच्छे जक्खसलोगयं ॥ २४ ॥ अह जे संवुडे भिक्खू, दोण्हं अन्नयरे सिया। सव्व दुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिड्ढीए ॥ २५ ॥ उत्तराई विमोहाई, जुईमन्ताणुपुब्बसो। समाइण्णाई जक्खेहिं, आवासाइं असंसिणो ॥ २६ ॥ दीहाउया इड्ढीमन्ता, समिद्धा कामरूविणो। अहुणोववन्नसंकासा, भुज्जो अच्चिमलिप्पभा ॥ २७ ।। ताणि ठाणाणि गच्छन्ति, सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खागे वा गिहित्थे वा, जे सन्ति पडिनिव्वुडा ॥ ॥२८॥ तेसिं सोचा सपुज्जाणं, संजयाण वुसीमओ। न संतसंति मरणंते, सीलवन्ता बहुस्सुया ॥ २९ ॥ तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खन्तिए । विप्पसीएज मेहावी, तहाभूएण अप्पणा ॥ ३०॥ तओ काले अभिप्पए, सड्ढी तालिसमन्तिए। विणएज लोमहरिसं, मेयं देहस्स कंखए ॥ ३१ ॥ अह कालम्मि संपत्ते,- आघायाय समुस्सयं । सकाममरणं मरई, तिण्हमन्नयरं मुणी ॥ ३२ ॥ त्ति बेमि॥ इअ अकाममरणिज्ज पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥५॥ monom॥ अह खुड्डागनियंटिजं छठं अज्झयणं ॥ जावन्तविजापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणन्तए ॥१॥ समिक्ख पण्डए तम्हा, पासजाई पहे बहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेत्तिं भूएसु कप्पए ॥ २ ॥ माया पियान्डुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाए, लुप्पंतस्स सकम्मुणा ॥ ३ ॥ एयमढें सपेहाए, पासे समियदसणे । छिन्द गेद्धिं सिणेहं च, न कंखे पुन्वसंथुयं ॥ ४ ॥ गवासं मणिकुण्डलं, पसवो दासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं. कामरूबी भविस्ससि ॥ ५॥

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