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[२४] २२ वाँ वर्ष
। ६० (१) संयत धर्म-यतना, 'पहले ज्ञान और ४१ निरन्तर सत्पुरुषकी कृपादृष्टि चाहे, शोक
फिर दया', जीव, अजीव, गति, पुण्य रहित रहें।
१७८ आदिके स्वरूपज्ञानसे संसार-निवृत्ति, ४२ आत्मा अनादिकालसे क्यो भटकता रहा? १७८ संवर, निर्जरा, केवलज्ञान, सिद्धगति १८६ ४३ मेरे प्रति मोहदशा न रखे, सत्पुरुषोका गुण- । ।
(२) अहिंसा, सत्य आदि पांच महाव्रत, एक स्मरण और समागम करें।
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बार खाना, रात्रिभोजन त्याग, छकाय ४४ शोचसम्बन्धी न्यूनता और पुरुषार्थकी
जीवकी रक्षा अधिकता
६१ ज्ञानवृद्धताकी प्राप्ति
१८९ ४५ यदि न चले तो प्रशस्त राग रखें। १७९, ६२ परमात्माके ध्यानसे परमात्मा, ध्यान सत्पुरुष४६ आत्मत्वप्राप्तिका मार्ग खोजें ।
की विनयोपासनासे, धर्मध्यान राजमार्ग, ४७ सात प्रकृतियोका ग्रन्थिछेदन और आत्म
धर्मध्यानकी प्राप्ति, उसकी भूमिकाएँ, भेद दर्शन, सतप्त आत्माको शीतल करना ही
और भूषण, जहाँ वासना जय वहाँ श्वास कृतकृत्यता, "धर्म" बहुत गुप्त वस्तु,
जय, उसके साधन, श्रेणि, वर्षमानता, उसकी प्राप्ति अत शोघनसे
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सबका मूल सत्पात्रता
६३ चित्तकी दशा विदित करना उपकारक , १९१ ४८ व्यवहारशुद्धि, उसके नियम
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६४ जहाँसे 'यथार्थदृष्टि' अथवा 'वस्तुधर्म' प्राप्त ४९ आशीर्वाद देते ही रहें, तन-मन-वचन और
करें वहाँसे सम्यग्ज्ञान सप्राप्त हो, जो एकको आत्मस्थितिको संभाले
जानता है वह सवको जानता है, ज्ञानवृद्धता, ५० अत करणको प्रदर्शित करनेके स्थान बहुत ही
पुनर्जन्मसवधी विचार, चैतन्य और जडकी कम, चार पुरुषार्थोकी प्राप्ति, प्रमाद करना
भिन्नता, आत्मज्ञान श्रेष्ठ, उसकी प्राप्ति, महामोहनीयका वल
सत्पुरुषोंके चरित्र दर्पणरूप - १९१ ५१ महान बोध-नया कर्मबंध न होनेके लिये
६५ धर्मनिष्ठ आत्माको शाति एक पुण्य १९४ सचेतता, समभावकी श्रेणि
६६ निग्रंथ द्वारा उपदिष्ट शास्त्रोकी शोधके लिये ५२ सर्वोत्तम श्रेय, कैसो इसकी शैली ! मात्म
आगमन
१९४ पहचानकी ओर ध्यान दे।
१८३ ६७ धर्मप्रशस्त ध्यानके लिये विज्ञापन ५३ सत्सग खोजें, सत्पुरुपकी भक्ति करें। १८४
६८ अनंत भवके आत्मिक दुखका परमौषध, ५४ मोक्षके मार्ग दो नही, एक ही मार्गके लिये
___यथार्थदृष्टि हुए बिना सव दर्शनोका तात्पर्य सभी क्रियाएँ और उपदेश, यह मार्ग सर्वत्र
ज्ञान हृदयगत नहीं होता, वुद्ध चरित्र मननीय १९४ सभव, वह मार्ग आत्मामें, उसकी प्राप्तिमें
६९ महासतीजी मोक्षमालाका यथार्थ श्रवण-मनन मतभेद बाधक
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___ करें, अनुभव और कालभेदके अनुसार ५५ कर्म जड वस्तु, अबोधताकी प्राप्तिका कारण,
उसका लेखन
१९५ समत्व-श्रेणिसे चेतनशुद्धि, मोक्ष हथेलीमें १८४ |
७० सत्सगकी बलवत्तरता है।
१९५ ५६ धर्मसाधन-देहकी सभाल'
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७१ शास्त्रबोध, क्रिया आदिका प्रयोजन स्वरूप५७ मैत्री आदि चार भावनाएँ
प्राप्ति, सर्वसगपरित्यागकी आवश्यकता, ५८ शास्त्र में मार्ग, मर्म तो सत्पुरुपके अंतरात्मामें १८५ / अतरग निग्रंथश्रेणिसे सर्वसिद्धि, अन्य दर्शनमें ५९ में आपके समीप ही हूँ, देहत्यागका भय न मध्यस्थता, प्राप्त अनुत्तरजन्मका साफल्य, समझें, दशवकालिक अपूर्व बात, परम
प्रत्येक पदार्थकी प्रज्ञापनीयता, आत्मव्याख्या कल्याणकी एक श्रेणि १८६ । भी उसीसे
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