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( ५ )
(१) विना मनसे क्षूद्या को सेहन करता है अर्थात् क्षुद्या कागनेपर भोजनादि करने कि पूर्ण अभिलाषा है परन्तु भोजन मीलता नहीं हैं तथा कीसी भी कारण से कर नही शके उन्होंको "अकम" कहते हैं ।
(२) विनामन पीसा सहेन करते हैं ।
( ३ ) विनोमन ब्रह्मचार्य पलन करते हो । जैसे स्त्रि न मिले तथा मिलनेपर भी रोगादिके कारणसे ।
(४) मन होनेपर भी पाणी न मीलनेसे स्नान न करे । (५) वस्त्रादिन भी मोलने से शीत ताप दंससादिका सेहन
करना ।
(६) मेल परिसेवा आदिको विना मन सेहन करे । इत्यादि निमनसे स्वल्पकाल या दीर्घकाल अपनी आत्माक कलेस उत्पन्न करता हुवा कालके अवसर में कालकर बाणमिंत्र देवarah अन्दर दश हजार वर्षोंकि स्थितिवाले देवता होते है उन्हीं देवतावोंके मनुष्यकि अपेक्षा बड़ी भारी ऋद्धि ज्योती क्रन्ति बल प्राक्रम होता है ।
(तर्क) वह देवता पर भवका आराधी हो शक्ता है ?
( सम०) परभवका आराधीक नहीं हो शक्ता है । अर्थात अकाम कलेस सेहन करनेसे मजुरीवाले पौदगलीक सुख मील जाते है परन्तु आत्मीक सुखों का एक अंस तक भी नहीं मीलता है एसे पौदमलीक सुख चैतन्यको अनन्तीवार मील चुका है परन्तु इन्हीसे आत्म कल्याण नहीं है।