Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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शृङ्गारलोकाः ।
प्राङ् मा मेति मनोरमागतगुणं जाताभिलाषं ततः
सव्रीडं तदनु लथीकृततनु प्रत्यस्तधैर्यं पुनः ।
प्रेमास्पृहणीयनिर्भररतक्रीडाप्रगल्भं ततो
mw
निःसङ्गाङ्गविकर्षणाधिकसुखं रम्यं कुलस्त्रीरतम् ॥ १२४ ॥ तावदेवामृतमयी यावत् लोचनगोचरा । चक्षुःपथादपेता तु विषादप्यतिरिच्यते ॥ १२५ ॥
BIS. 1315 (492) Bhartr. ed. Bohl. 1. 26. lith ed. II. and Satakāv. 65. Prasangabh. 8; SBH. 2137; SK. 5. 106; SU. 713; SLP. 3. 28.
124 d) B2 आयातेति; F3 प्राग्जाताल्प; H प्राक्प्राप्तेति ; X प्राग्वामेति ; G1 M3 प्रज्ञामेति (for प्राङ्मामेति ). Ba मनोरमं गतगुणं; Eat मनागनागतसुखं; F. 4 मनागना ( F3 °ता ) गतगुणं; Fs W मनागमानित ( Wat नि स ) गुणं; H मनोरथागतगुणं; Jit मनागनागतरुणा; Jic. a मनागनागतरु (J2 °त ) णं; YT G2-3 M1. 2 मनागनागतरसं; Ch Ms मनागनारतरतं; Ms. 6 मनागसंगवरसं (for मनोरमागतगुणं ). C अन्योन्यातिरसेन संस्तुतगुणं. Y1 ( printed text ) जाताभिलाषा. - १ ) C सक्रीडं (for सम्रीडं ). G1 M2. 3 तदथो (for तदनु ). C थोद्यतमनः-: D Eat धोद्यमतनु-; F3 थांशुकमतः; F1 J2 Y1 - 3 G3 M1-3 थोद्यममनु-; Fs W थो
तमनु-; Jit लथरोद्यमनु- Jic शतोद्यमतनु-; Y+6 T Go लथोद्यममथ; Y7 लोधोरसमनु-१ Ys श्रमोद्यममथ; G1 मिथोद्यममनु-; G2 थोद्यमननु; G+ थोद्धतमन:-; M1.5 लथम्क ( Mo .क) चभरं (for श्लथीकृततनु ). B2CDY3.63T G5 M 4. 5 प्रध्वस्त- ( Y3 °स्थ ) ; Ga Ma •वस्त (for प्रत्यस्त) H ततः ( for पुनः ). © ) B2 Y 4. 8 TG1.2.5 M प्रेमाई; Eo. 1. 20. 8–5 प्रेमार्द्ध-; Wat. v. Y. प्रेमाई : (for प्रेमाई ). E2 - निर्झर-; Gat गर्भर; M1.5 मन्मथ (for - निर्भर ). BCDF 1. 2. 8 J20.2 Wo X1. 2. 4-7 TG2-5 M1.25 -रहःक्रीडा-: Eat FH X -रसक्रीडा - ; Jit Ya - रहक्रीडा-; Wt -हर:क्रीडा-; Y: रसः क्रीडा ; Ga Ma - रहःप्रौढ-; Ma - रणक्रीडा (for - रतक्रीडा - ). W - प्रगल्भा. - 4 ) F निःसीमांग - ; Es J WY1 निःशंकांग-; X निःशंकांक- (for निःसङ्गाङ्ग - ). Eat G2. 3. 5 - निकर्षणाधिक: FY 1B -विघर्षणाधिक-; G1M1-3 - विकर्षणोदित C निःशंक कचकर्षणादिकरसं; Ms. 5 निःसंगादिव कर्षणाधिक सुखं. M3 रम्यं च कुस्त्रीवृतं.
BIS. 4299 (1885) Bhartr. ed. Bohl. 1. 25. lith. ed. II. 68. Śatakāv. 64. Prasañgābh. 9 ; SRB. p. 317. 7 ; SBH. 2242; SLP. 5. 4 (Bh.).
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125 In E1 and others of the type, this st occurs twice by confusion with सावन्महत्वं -) B1 D Eo. 1.1 ( second time by corr. ). गोवरे; E1 ( first time ) 'गोचरा:; W 'गोचर- © ) C_F+ X Y1a ( and printed text ). 2-7 T14. 2. 8 G1.4 चक्षुष्पथाद्; Fo चक्षुः संगाद्; Yin चतुष्पथाद्. B1 D अपेता सा; C Y21-8TG M भतीता J1 अपेतासि; W अपगता (for अपेता तु ). B2 वक्षःसंपादने सा तु; E2. 10 चक्षुःसंपातविरहे. d) Eat विषादपरिरिच्यते ; G1 सा नारी विषवल्लरी.
BIS. 2546 (1028 ) Bhartr. ed. Bobl. 1. 74. Haeb. 77. lith ed. II, 69, SBHE. 1244; SLP. 5.5 ( Bh. ).
७ भ. सु.
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