Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 242
________________ १३७. संशयितश्लोकाः। सिंहो जम्बुकमङ्कमागतमपि त्यक्त्वा निहन्ति द्विपं सर्वः कृच्छ्रगतोऽपि वाञ्छति जनः सत्त्वानुरूपं फलम् ॥ ३५० ॥ खादिष्ठं मधुनों घृताच् च रसवदू यत् प्रस्रवत्यक्षरं दैवीं वागमृतात्मनो रसवतस् तेनैव तृप्ता' वयम् । कुक्षौ यावदमी भवन्ति धृतये भिक्षाहताः सक्तवस् तावद् दास्यकृता जनैन हि धनैर्भोगान् समीहामहे ॥ ३५१ ॥ हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं धात्रा मरुत् कल्पितं व्यालानां पशवस् तृणाङ्करभुजः सृष्टाः स्थलीशायिनः । संसारार्णवलङ्घनक्षमधियां वृत्तिः कृता सा नृणां यामन्वेषयतां प्रयान्ति सततं सर्वे समाप्ति गुणाः ॥ ३५२ ॥ पुनस्तत्स्यात्; Y2 M1. 3-5 न पुनस्तस्य (for न च तत्तस्य). W3.4 (by corr.) G2.3 क्षुधः (for क्षुधा-). C आगतं गतमपि; Y3 एकमागतमपि; T3 अंकमागतवति; Gst अंगमागतमपि. A2S E5 त्यक्ता. Y2 [अधिहंति. ---1) Y3 सर्व; G1.4 M2.3 प्रायः (for सर्वः). Wa कृत्स्नगतोपि. Y: वांछित-- Cस्वात्मानुरूपं% G2.3 सत्त्वानुकूलं. BIS. 7322 (3335) Bhartr. ed. Bohl. 2. 33. Haeb. 34. lith, ed. I, II and Galan 30, III. 18. Palic. ed. Orn. I. 12. Hit. II. 39. ed. Rodr. p. 160. Subhash. 307 ; SRB. p. 79.22; SBH. 1025 (Palic.); Tantrākhyayika I. 7; Edgerton. I.9%B SSD.2. f. 102b. 351 V} Found in A B C D E, F1 V12, ISM Gore 144 V194 [Also BORI 329, Punjab 2101 and Jodhpur 3 V7; GVS 2387 and NS1 V10; NS2 V8, V94 (93); BU V9; NS3 V105 (extra)]. -") F1 यन्मिष्टं (for स्वादिष्ठं). A रसाय%B C F1 घृताश्चE घृतादि. Alc.F1 यत्प्रश्रवत्यक्षरं; B यद्यच्छवत्यक्षयं D यत्प्रत्यपद्याक्षरं; Eo यत्प्रप्तवत्यक्षरं; E2 तवत्यक्षरं; Es आप्रश्रवत्यक्षरं. - ") D E ISM Gore देवी. BC तात्मना. BC रसवता; D रसवती. B2 तृष्णा (for तृप्ता).--")Cरूक्षा (for कुक्षौ); E6 भिक्षाहृतां. Aic E3 शक्तवस्. -1) B C Eo.: Fi° कृतार्ज(Eo जु)नैन हि धनैर; Es कृतार्जनैव वसुभिर- ISM Gore नि. (for हि). C वृत्तिं (for भोगान्). D समीहाम ते; E समीहामहै. BIS.7337 (5374) Bhartr. ed Bohl. 3. 97. Haeb. 92. Satakāv. 109. Missing in the MSS. compared by Bohl. and Weber. 352 VP Om. in W. Missing in Y:.---.)Y1.2.4-6T2.3 °लब्धम: Y°लाभम (for 'लभ्यम्). F2 Y कल्पितो. -") GI M2 इतरे (for पशवस). A. Eo.st Y2.3M. स्पृष्टाः; D पुष्टाः; JY.G.S T G+ तुष्टाः; Ms स्वस्थाः (for सृष्टाः ). - ) Y3°लंघने. Y1 -स्थिरधियां; M -क्षमधिया. Jat वृतिं; J2c वृत्तः, T2.3 युक्तिः (for वृत्तिः ). -") Ji.s यावन्वेषयतां; Y5.6.8 Ti G+ तामन्वषयतां. Est.st F1Y3 G2 प्रयाति. CY3 सहसा (for सततं). G गताः (for गुणाः). 543712460) Bhartre ed. Bohl.3.98. Haeb.9alith ed. II. 10. Santi. Sahaka 1. 13 (Haeb. 412). Kavyakal. und Kavyas. 23; SRB. p. 97. 13 (Bh.); SBH. 3139 (Bh.); SHV. f. la. 2 (Bh.); SU. 10523; SSD. 4. f.2a. १८ भ.सु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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