Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे न भोगहार्या न च बन्धुहार्या न भ्रातृहार्या न च राजहार्या । खदेशमित्रं परदेशबन्धुर्विद्यासुधां ये पुरुषाः पिबन्ति ॥ ५६१।। नरपतिहितकर्ता द्वेष्यतां याति लोके ___ जनपदहितकर्ता त्यज्यते पार्थिवेन्द्रैः। इति महति विरोधे वर्तमाने समाने
नृपतिजनपदानां दुर्लभः कार्यकर्ता ॥५६२॥ नवमेऽधोमुख विद्याद दशमे जन्म च ध्रुवम् । एवं गर्भस्थितिः प्रोक्ता प्राणिनां भवजन्मनि ॥ ५६३ ।। न विद्यया केवलया तपसा वापि पात्रता। यत्र वृत्तमिमे चोमे तद् हि पात्रं प्रचक्षते ॥ ५६४॥ न विषममृतं कर्तुं शक्यं प्रयत्नशतैरपि। ___ त्यजति कटुतां न खां निम्बः स्थितोऽपि पयोह्रदे । गुणपरिचितामार्या वाणीं न जल्पति दुर्जनश
चिरमपि बलाध्माते लोहे कुतः कनकाकृतिः ॥ ५६५ ॥ न वैराग्यात परं भाग्यं न बोधादपरः सखा । न हरेरपरस्त्राता न संसारात परो रिपुः ॥५६६॥ न स कश्चिदुपायोऽस्ति देवो वा मानुषोऽपि वा । येन मृत्युवशं प्राप्य जन्तुः पुनरिहाव्रजेत् ॥ ५६७॥ न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् । धर्मः स नो यत्र न चास्ति सत्यं सत्यं न तद् यत् कपटानुविद्धम् ॥५६८॥
561 Ady xxV-L2. after N16 (without number). -SSD.2.1.1100%; cited in Ti com. on 15=होति.
562 CN101 (102): IO1854, extra in fol. 233% Bik3280, Ben60-10 and 57-4 N12. - BIS. 3396 (1443 Paiic ed. Koseg. I. 147. ed. Orn. 107. ed. Bomb. 131; Sp. 1353; SRB. p. 152. 409; SN. 843; SSV. 1621; JS. 5083; SKG. f. 7b. 563 Meh V148.
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