Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे प्रणमत्युन्नतिहेतोर्जीवनहेतोर्विमुञ्चति प्राणान् । सुखहेतुस्तव दुःखी सेवक अन्यस तु मूर्ख एव ॥ ६०६ ॥ प्रतिदिनमयत्नसुलझे भिक्षुकजनजननि साधुकल्पलते ।।
नृपनमनि नरकतारिणि भगवति भिक्षे नमस तुभ्यम् ॥ ६०७॥... प्रथमवयसि-पीतं तोयमल्प स्मरन्तः शिरसि निहितभारा नालिकेरा नराणाम् । सलिलममृतकल्पं दाराजीवितान्तं न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ॥६०८
प्रशान्तशास्त्रार्थविचारचापलं निवृत्तनानारसकाव्यकौतुकम् । निरस्तनि:शेषविशेषविप्लवं प्रयातुमन्विच्छति शंकरं जनः ॥६०९॥ प्रातःस्नानमनःप्रसादजननं दुःखप्रविध्वंसनं
शौचस्यायतनं मलापहरणं संवर्धते तेजसाम् । रूपज्योतिकरं गदप्रशमनं सत्कर्म चाप्यापना[१]
नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नानाद् दशैते गुणाः ।। ६१० ॥ प्राप्ता जरा यौवनमप्यतीतं बुधा यतध्वं परमार्थसिद्धयै । आयुर्गतप्रायमिदं यतोऽसौ विश्रम्य विश्रम्य न याति कालः ॥६११॥ बन्दी विन्दति पत्रपात्रपदवी शिष्टैर्विशिष्टैरलं
पुम्भिश्चेदुपलभ्यते रतिसुखं कैणीदृशामादरः। उत्पन्ना यदि जागडीषु कविता किं नः कृतं संस्कृतैर्
भूपाले यवने समस्तभुवने वैदग्ध्यमस्तं गतम् ॥ ६१२ ॥ 606 HU155039%3; Nag421038. Ana624 N1463 ISM Kalamkar 125 N42 141): NS3N46. - BIS. 4217 (1835). Hit. ed. Schl. II. 25. Johns. 24. Sah. D. 326: SRB. p.97.14%3D SDK. 5.42.4 (305); SRH. 124. 15 (Sundarapandya): SRK. p. 108.3 (ST). SHV. (fol. 73a) 801; SG. f. 40a%3; SSD. 2. f. 146a%3 SKG. f.9b.
607 D V102; GVS2387 V78; Lim1486 V extra8%; BVBb V108 (extra); Bik3279 V107 (4). - SRB. p. 26. 1; SRK. p. 48.7 (5p.); SS. 36.8; SM. 9083; SSV. 889.
608 Mys582 N63. - BIS. 4249 (1856) Vikraimaca. 91. Prasangabh.3B Sp. 1029; SRB. p. 51. 220 ; SKI. 33. 34 ; SR.K. p. 210. 1 (Sp.).
609 D V125%3 Eo V118. -)ल्पविस्तर. - ") मनः (for जनः); Es V120%; BORI331 V132; Ji (only up to faen in b after the last sloka); F1.2 V102; BORI328 V134 (28): BORI 329 V943; Pun2101 V943; Pun697 V116%3BGVS2387 V110 -1) प्रगन्तुमन्विच्छति कौतुकं मनः; Jod3 V126%3 NS2 V86 (85); Sri 309 V87 - 4) विचारणं मनो-.-4) प्रकृष्टमन्विच्छति शूलिनं मनः; Meh V126; Bik 3279 V131 (27); Bik 3278 and 3281 V122. - BIS. 4279 (4591) Bhartr. lith. ed. II.3.100%; Subhash. 317; SBH.3405 (Susanta).
610 HV2145N10 (5). ___Gil - BIS. 4325 (1901) ef. Sehiefner and Weber p. 13; sp. 4165 (Bh.); SRB. p. 374. 196 (Bh.).
612 Wai 2 extra 1 corrupt). - SRB. p. 180. 1052 (var.); SHV. App. I. f, 2b. (order cdab).
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