Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 272
________________ संकीर्णश्लोकाः। १६७ न दुर्जनः सजनतामुपैति बहुप्रकारैरपि सेव्यमानः । भूयोऽपि सिक्तः पयसा धृतेन न निम्बवृक्षो मधुरखमेति ॥ ५५४ ॥ न देवे देवत्वं कपटपटवस तापसजना - जनो मिथ्यावादी विरलतरवृष्टिश् च जलदः। प्रसङ्गो नीचानामवनिपतयो दुष्टमनसो __ जनः शिष्टा नष्टा अह ह कलिकालव्यतिकरः ॥ ५५५ ।। न निर्मिता केन च दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गी । तथापि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः ॥ ५५६ ॥ न नाकपृष्ठं न च सार्वभौम न पारमेष्ट्यं न रसाधिपतम् । न योगसिद्धिं [न] पुनर्भवं वा वाञ्छन्ति पादं सुरज प्रपन्नम् ॥५५७ ॥ न परिहरति मृत्युः पण्डितं श्रोत्रियं वा धनकनकसमृद्धं बाहुवीर्य नृपं वा। तपसि नियमयुक्तं सुस्थितं दुःस्थितं वा वनगत इव वह्निदुर्निवार्यः कृतान्तः॥५५८ न भवति भवति च न चिरं भवति चिरं चेत् फले विसंवदति । कोपः सत्पुरुषाणां तुल्यः स्नेहेन नीचानाम् ॥ ५५९ ॥ न भिक्षा दुष्प्रापा पथि पथि मठारामसरितः फलैः संपूर्णा भूविटपिमृगचर्मापि वसनम् । सुखे वा दुःखे वा सदृशपरिपाकः खलु तदा . त्रिनेत्रं कस त्यक्त्वा धनलवमदान्धं प्रणमति ॥ ५६०॥ 554 wai2 extra7, corrupt, -- BIS. 3295 (4301). Vrddhacāna. 11. 6, SRB. p. 59.224; SRK. p. 22. 4 (Sp.); ST. 3.43; VS.359; SK.2.119%B SHV.f. 57b. 582. : 555 HU2145 N52 (38). - SRB. p. 99. 13; SRK. p. 64. 1 (ST). ... 556 A N60. -- BIS. 3324 (1409). Vrddhacana 16.5. Vikramacarita 45. Subhash. 175%B SS. 46. 15. 557 NSI V99. 558 BORI328 V122 (118). - BIS. 3968 (परिहरति न). Subhash. 82. 559 BORI329 N101 (96, Corrupt). - SRB. p. 47. 107%DB SBH. 236%3; SRH, 31. 22 (Sundarapāņdya); Alamkäraratnākara515. (1) 23 (?); Hemacandra's Kavyanusāsana 5. (KM. 71, p. 208 varr); PT: 1.37; BPB. 285; SSD. 2. f. 125b; SSV. 15213 Js. 459. 560 A V37; B V104; D V38. - ) मृगचर्मादि वसनं ; Eo. 5 (and a few Dhanasāra Mss. like BORI3827-1884-87) V37; F4 V38. - ) भुवि विटपिमृगचर्मापि (sic); Jod3 V40%; Pun2101 V373; Pun697 V36%; NS1 V43; NS2 (30); BORI328. V40. -") मृगविटपिचर्माधिवसनं. - °) तं सुखे वा Meh V39; Bik3279 V42 (41); Bik3280 V41; BORI329 V383; HU1387 V40. - BIS. 3362 (1629) Bhartr. lith. ed. I. 3. 97. also in Subhāsh. 3133; Prabandhacintamapi 82: SN. 320. BPS. I.25a. 154.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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