Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे
अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलोभता ।
अशौचं निर्दयत्वं च स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः ॥ ३६८ ॥ अन्तर्विषमता होता बहिरेव मनोहराः । गुञ्जाफलसमाकारा योषितः केन निर्मिताः ॥ ३६९ ॥ अपि सर्वविदो न राजते वचनं श्रोतरि बोधवर्जिते । अपि भर्तरि नष्टलोचने विफलः किं न कलत्र विभ्रमः ।। ३७० ।।
अपूर्वो दृश्यते वह्निः कामिन्याः स्तनमण्डले । दूरतो दहते गात्रं गात्रलग्नः सुशीतलः ॥ ३७१ ॥ अपेक्षन्ते न पात्राणि न स्नेहं न दशान्तरम् । सदा लोकहितासक्ता रत्नदीपा इवोत्तमाः ॥ ३७२ ॥ अफलस्यापि वृक्षस्य छायां सर्वः समीहते । निर्गुणोऽपि वरं बन्धुर्यः परः पर एव सः ॥ ३७३ ॥ अभित्तावुत्थिते चित्रे दृश्यते भित्तिरातता ।
अहो विचित्रा मायेयं भ[ म १ ] नं तुण्डं शिला प्लुता ॥ ३७४ ॥ अमेध्यपूर्ण क्रिमिजन्तुसंकुलं स्वभावदुर्गन्धमशौचमध्रुवम् । कलेवरे मूत्रपुरीषभाजने रमेत मूढो न रमेत पण्डितः ॥ ३७५ ॥
.")
अशौच्यं.
D V150; Bik 3280 N39; BORI 326 V105 ( 104 ) - 2 ) लोभतः. BIS. 328 (109) Vrddhacãn. 2. 1; Pañüc. ed. orn. I. 149. ed. Bomb. 195; Hit. ed. Schl. ad. I. 189; Johns. I. 208; Vet. in LA p. 21 (III) 17. Galan. Varr. 49. Subhāsh. 219; SRB. p. 348.1; SRK. p. 113 ( Sphutaśloka); SM. 1398 ; SN. 270; SSD. 2. f. 165b; SSV. 1383; JS. 398.
368
369 D V149; BORI 326 V104 (103). BIS. 346 (119). Pañic. ed. Koseg. I. 211. IV, 59. ed. Bomb. I. 196. IV. S7. ed. orn. I. 156; Subhash, 23. 294; SRB. p. 348. 22; SM. 1411; SSD. 4. f. 20a; SSV. 1396.
Bar5199 N5.
370
-
371 Wai2 extra 2 ( corrupt ). 15; SRB. p. 277. 11; SLP. 3. 26.
-
BIS. 451 (161) Śrngaratilaka 18. Subhash,
372Y1N81 ( 80 ) ; Y4 - 5 G1 - 3.5 and Goa N80. *) Gs. 5 Goa रक्ता (for -सक्ता). BIS. 455 (165) Subhash, 147; SP. 235; SRB. p. 46. 42; SBI. 224; SRH. 31. 3;SA. 16. 1; Padyaracanã (KM. 89 p. 110. 30); SK. 2. 77; SU. 1483; PT. 1. 3; SN. 622; SSD. 2. f. 97a.
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373 CN105 (106); BORI329 N103 (98); Bik 3280 N53; Bik 3279 N72. • SA, 37. 6. 374 ISM Gore144 V180. 375 Ady XXV-L-2 $41.
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