Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 259
________________ १५४ भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे को न याति वशं लोके मुखपिण्डेन पूरितः । मृदङ्गो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम् ॥ ४६७ ॥ को लाभो गुणिसंगमः किमसुखं प्राज्ञेतरैः संगमः का हानिः समये च्युतिर्निपुणता का धर्मतत्त्वे रतिः । कः शूरो विजितेन्द्रियः प्रियतमा कानुव्रता किं धनं विद्या किं सुखमप्रवासगमनं राज्यं किमाज्ञाफलम् ॥ ४६८ ॥ क्रीडां करिष्यति कियच्चिरमेकहंसः स्निग्धोल्लसत्कलरवोऽपि शरीरवाचाम् । कालैरघट्टघटिकावलिपीयमानम् आयुर्जलं पिबति शोषमुपैति यत्र ॥ ४६९ ॥ कचिद्वीणानादः क्वचिदपि च हाहेति रुदितं क्वचिद् विद्वगोष्ठी कचिदपि सुरामत्तकलहः । क्वचिद् रम्या रामा क्वचिदपि जराजर्जरतनुर न जाने संसारः किममृतमयः किं विषमयः ॥ ४७० ॥ क्षुद्राः सन्ति सहस्रशः स्वभरणव्यापारमात्रोद्यताः स्वार्थो यस्य परार्थ एव स पुमानेकः सतामग्रणीः । दुष्पूरोदरपूरणाय पिचति स्रोतः पतिं वाडवो जीमूतस् तु निदाघसंभृतजगत्संतापविच्छित्तये ॥ ४७१ ॥ 467 – BIS. 1930 (748) Bhartr. ed. Bobl. extra 20. Haeb. 2. 105; SRB. p. 156. 156; SRK. p. 232. 20 (Sphuṭasloka); ST. 13. 2. SK. 147a; SL. f. 32b. 468 WN103. BIS. 1943 (755) Bhartṛ. ed. Bohl. extra 10. lith. ed. I. 2. 101; III. 102. Galan 105. Nitisak. 27. Kavitamrtak. 53. Prasangābh. 11b; SRB. p. 180. 1405; SRK. p. 239. 84 (Bh.); SL. f. 30a; SN. 841; SSD. 2. f. 157a; SMV. 11. 2. 469 D V142; BORI 328 V160 (51). ... एष (for एक-), ") करिष्यसि ... कालारघट्ट. - * ) झटिति (for पिबति ); Bik 3279 V154 (50). 470 AV66; F3 V69 ( aebd). # ) घीणावादः .. 4) मारी ( for रामा). 'दवि व राजीवपुषः; Ps V102. - * ) - वाद्यं ( for - नादः ). 2) दपि च सुरा. ९) कचिद्रामा . रम्याः... गलत्कुष्ठवपुषो (for जरा ); X Vô8 ( cabd). " ) वाणी ( for नादः ). - ") हतासानमतुलं (for सुरा ). ४) गलत्कुष्ठरुधिरा ( for जरा ); BORI 326 V98 ( 97 ) (acbd). - “ ) वाद्यं (for नादः ). () कचिद्रामा रम्या... वपुः (for -तनुः ); BORI 328 V114 (112); BORI 329V56; BU V107 (105) ; Wai2 V92; Jodh1 V77; Jod3 V37 (bead); Pun2101 V55; Pun697 V66; GVS 2387 V121; HU 2144 V97 (93); HU 2145 V106 (99); Meh V114; PU496 V103 (102); Bik 3279 V115 (12); Bik 3280 V111 (12). BIS. 1989 (3991) Bhartr. in Schiefner and Weber. p. 25. Subhash. 28. 313; SRB. p. 89. 5 (bacd); SBH. 2941, ") नृतं afra (for afrom:); SRK. p. 99. 5 (bacd Bh.); RKB. f. 39a (Bh. var.); SMV. 8. 13 (bead). - Jain Education International ― BIS. 471_Nag 421 Tau 4911 and 4934, N12. N15 in Telang's Ms. D. 2032 (794) Vikramaca. 5. Sp. 773 (Meghanyokti 9); SRB. p. 52. 257 (also p. 230.37 ); SBH. 285; SRK. p. 12 21 ( ST. ) SA. 27.15; Prabandhacintāmani (Singh ed.) 128; ST. 1. 33; SS. 24. 13; SK 2. 74, 6. 34; SSD. 2. f. 123a; JSV. 182. 8; SKG. f. 15b. For Private & Personal Use Only - - ′′) www.jainelibrary.org

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