Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 249
________________ १४४ भर्तृहरिसुभाषितसंग्रह आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः । क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिवति तद्रसम् ।। ३९७ ॥ आदौ मजनचीरहार तिलकं नेत्राखनं कुण्डलं नासामौक्तिकमालतीविकरणं झंकारकं नूपुरम् । अङ्गे चन्दनचर्चितं मणिगणः क्षुद्रावलि [ र् ] घण्टिका ताम्बूलं करकङ्कणं चतुरता शृङ्गारकाः षोडश ॥ ३९८ ॥ आपन्मूलं खलु युवतयस तन्निमित्तोऽवमानस् तासां यावत् सलिललहरीभङ्गुरः पक्षपातः । अप्येवं भो परिणतशरच्चन्द्रविम्बाभिरामं दूरीकर्तुं वदनकमलं नामस्मत्प्रियायाः ।। ३९९ ।। आयासशतलब्धस्य प्राणेभ्योऽपि गरीयसः । गतिरेकैव वित्तस्य दानमन्या विपत्तयः || ४०० ॥ आयुर्लेखा पवनचलना श्लिष्टदीपोपमेया संपच चैषा मदवशचलत्कामिनीदृष्टिलोला । तीव्रश्चान्तर्दहति हृदयं विप्रयोगः प्रियेभ्यस् तस्मादेतत् सततममलं ब्रह्म शान्तं प्रपन्नाः ॥। ४०१ ॥ आलिङ्गत्यन्यमन्यं रमयति वचसा लीलया वीक्षतेऽन्यं रोदित्यन्यस्य हेतोः कलयति शपथैरन्यमन्यं वृणोति । शेते चान्येन सार्धं शर्मा [ ? य ]नमुपगता चिन्तयत्यन्यमन्यं स्त्री माया दुश्चरित्रा जगदहितकरी केन कष्टेन सृष्टा ॥ ४०२ ॥ आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्यैवं पुनः पुनः । इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो, नारायणः सदा ॥ ४०३ ॥ 397 Ana1788 N 101. BIS. 938 (337). Schl. IV. 94. ad. II, 138. ed. Johns. II. 144. IV. 101b. 94; PT 9. 20; BPB. 11. 398 Bik 3275 $111. - SBH. 2137. 399 M3. 5 III-20. 400 BVB2 N59; BVB5 extra marg. f. 3b; Bik 3281 and 3278 N65; K. T. Telang's MS. F (Kathavate) N65. SRB. p. 69. 13; Tanträkhyāyikā II. 109; SRH. 13. 6. - " ) शेषा (for अन्या ). SS. 17. 15; SM. 1218; SSD. 2. 1. 107 ; SSV. 1203 ; SKG. f. 12a; Prabandhacintāmani 265 ( Bh. ). ८) आयुश्लेषा. 2 ) संपद्वेषा... SS. 44.3; SSD. (d) जादेयत्व प्रदेयस्य. Hit. ed. 98; SRB. p. 161. 354; SHV. f. - 401 D V145; BORI 328 V165 (156) - 'cester. - ' ) तीव्रस्वान्त' ; Bik. 3279 V159 ( 55 ). 402 F1 $62 4. f. 20a. 403 Jain Education International ४) शृणोति (for घृणोति ); Ujj6414 862. 1SM Kalamkar 692 V67. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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