Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
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संकीर्णश्लोकाः । कन्थासंचरणं कदन्नमशनं ताम्बूलहीनं मुखं
खट्दैका त्रुटिता विशीर्ण * * * जाया जरामर्कटी । वृत्तिः काय विशोषणेन शिशवो * * * * * * * , मूढानां सुखलिप्सया ननु तथाप्यास्था गृहस्थाश्रमे ॥ ४४३ ॥ कपिकुलनखमुखविदलिततरुतलनिपतितफलाशिनेपि वरम् ।' न पुनर्धनमदगर्वितभ्रूभृङ्गविलासिनी दृष्टिः ॥ ४४४ ॥ कलिलं चैकरात्रेण पञ्चरात्रेन[०ण]बुद्धदम् ।। पक्षैकेनाण्डकः सोऽथ मासपूर्णे शिरो कुरु ॥ ४४५ ॥ कल्पान्तपवना वान्तु यान्तु चैकखमर्णवाः । तपन्तु द्वादशादित्या नास्ति निर्मनसः क्षतिः ॥ ४४६ ॥ कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमौ । कश् चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः॥४४७ ॥ काचिन् मृगाक्षी प्रियविप्रयोगे गन्तुं निशापारमपारयन्ती । उद्गातुमादाय करेण वीणामेणाङ्कमालोक्य शनैरहासीत् ॥ ४४८ ॥ कार्कश्यं स्तनयोदृशोस् तरलतालीकं मुखे श्लाध्यते - कौटिल्यं कचसंचये च वदने मान्यं त्रिके स्थूलता । भीरुत्वं हृदये सदैव कथितं मायाप्रयोगः प्रिये
यासां दोषगणो गुणा मृगदृशां ताः स्युः पशूनां प्रियाः ॥४४९॥ कावेरीतीरभूमीरुहभुजगवधूभुक्तमुक्तावशिष्टः __ कर्णाटीचीनपीनस्तनवसनदशान्दोलनस्पन्दमन्दः । लोलल्लाटीललाटालकतिलकलतालास्यलीलाविलोल:
कष्टं भो दाक्षिणात्य प्रचलति पवनः पान्थ कान्ताकृतान्तः॥४५०॥
443 BVB2 V103.
444 BVB2 (f. 13a) Vextra on murg. Bik 3275 V11. - ) भोजने न वरम्. -4) विकारिणी दृष्टिः. 445 Mch. V145. cf. Garbhopanisad 3.
446 ISM Gore 144 VI7b. - Ep. 4223. 447 Nag299 N119.
448 Ms.5 SII-2. - Sp. 519; SRB. p. 185. 31; SRK. p. 14736 (Sp.); SK.3.381; SL. f. 11a; BPS. f. 30a. 191.
449 Es V65 (interpolation?). - BIS. 1670 (647) Pañc, ed. Koseg. I. 205. ed. orn. 153. ed. Bomb. 1903; SRB. p. 350.78.
' 450 ES112 (extra). - Sp. 3811 (Raksasapandita); SRB. p. 335. 136%3; SU. 811 (Akbari-Kalidasa); Padyaveni 607; SG. f. 73b; BPS. f. 25a. 156.
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