Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan
View full book text
________________
संशयितश्लोकाः ।
ये संतोषसुखप्रमोदमुदितास् तेषां न भिन्ना मुदो ये त्वन्ये धनलुब्धसंकुलधियस् तेषां न तृष्णा हता । इत्थं कस्य कृते कृतः स विधिना तादृक् पदं संपदां खात्मन्येव समाप्तहेममहिमा मेरुर्न मे रोचते ॥ ३१४ ॥ रम्यं हर्म्यत ं न किं वसतये श्रव्यं न गेयादिकं किं वा प्राणसमासमागमसुखं नैवाधिकप्रीतये ।
N
किं तद्भान्तपतत्पतंगपवनव्यालोलदीपाङ्कुर
MWWWW
च्छायाचञ्चलमाकलय्य सततं सन्तो वनान्तं गताः ॥ ३१५ ॥
WW
314 {N, V Om. in W, and Harilal lith. ed. Punjab 2885 V 28; NS3 N21, V26; ISM Kalamkar 195N18 ( 19 ), V28. – 4 ) YT G1.4.5M - निरंतर - ; F1 -सुखप्रबुद्ध (for -सुखप्रमोद ). J1.3 -मुदिता. As येषां (for तेषां ). D भिन्नो मदो; F2 J भिन्ना मुदा. - 0 ) F1. 4 [S]प्यन्ये; F2 चान्ये (for त्वन्ये) A F1.2 -लोभ-; Eo -लब्ध-; It - लब्धि- (for -लुब्ध). Ys - कातर- (for -संकुल- ). B1 कृष्णा. A23 Eo. 1.2.5 H1 हताः; B CE3H8 F2 - 4 I J 10. 2.3 T3 G2 3 हृता ( I ताः ) ; Jit स्पृहा (for हता ). *) In many NM43. इत्थं looks like इच्छं. J 1 अप्येकस्य (for इत्थं कस्य ). Eo तस्य; Fam.v. यस्य (for कस्य ). J23 Gat कृतं (for कृतः ). J2 Y_तु; J3 च; Gst सु- ( for स ). F4 तादृक्पतिः. Eot स्वापदां. (d) Vs स्वात्मन्येवम्. F2 J1 Y7 G4 समस्त-; Fs समाम: Y: भवास- (for
-
समास - ).
१२३
BIS. 5579 (2526) Bhartṛ. ed. Bohl. 3. 12. Haeb. 2. 19. Satakāv. 80. Subhāsh. 305 ; Śp. 1065 ( Bh. in some Mss., Vidyāpati in others. ); SRB. p. 215. 5 (Lalluputra Vidyādhara); SBH. 1027 ( Lallusūnu Vidyādhara); SKM. 36. 14 (Vidyapati); SRK. p. 196. 2 (Sp.): SM. 1203; SSD. 2. f. 53bs SSV. 1188.
315 { V} Om in B, Jodhpur1, BORI 326 Sxngeri 309, BVB5 and Harilal' lith. ed. Ujjain 6414 V64 (60), 65 (61) . – # ) J3 वसति ये. Dlacuna; Es F24J WY1-5 GM श्राव्यं (for श्रव्यं ). M 2 गेयादि किं. - 1 ) G2 नैवा (for किं वा ). DE 3. 4 I Gat प्राणसमं (for 'समा) W3 -समागमसुखे ; Y1Bt M1.4.5 -गमागमसुखं; Y2 (m.v. as in text) -गमागतसुखं; Y4 गमोत्सवसुखं; T3 - समागमसुतं. C D E 8. 4 F2-5 H W X Y1-2 G1. a. M नैवाधिकं ; J3 Y: नैवाधिक.. F3 प्राप्तये ; X1. 2 (orig.) प्रीयते (for -प्रीतये ) . - . ) DFs Jsts W Ys-8T G1.SC. 5 M1. 2.4.5 तु; F2.3IG2t तद्-; Y2 भू-; Gat - चिद् ; G4 नु. (for द्- ). C 8 ( except M4. 5 ) -पतंगपक्ष- (for पतत्पतंग ). C Yr G5 - व्याधूत- ( for -ज्यालोल ). C दीपानलचू-: Y1 नीपांकुरचू · d) G1 M1. 2 - ज्वाला (for -छाया ). C Eo. 2. 8F H J (Js by corr.) S ( except W Y7 ) सकलं; D वदनं (for सततं ). X गतः
-
Jain Education International
BIS. 5714 (2589) Bhartṛ. ed. Bohl. 3. 81. Haeb. 76. lith. ed. I. 79, III. 77. Galan 74. Kavyakal. 26 Nitisamk. 67; Sp. 4114 (Bh.); SRB. 373. 181; SBH. 3326; SKM. 131. 51 (Vijñānātman); SDK. 5. 65. 2 (p. 320, Vijñānātman); SRH. 197. 364 (Bh.); Śāntiśataka 2. 14.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346