Book Title: Shataka Trayadi Subhashit Sangraha
Author(s): Bhartuhari, Dharmanand Kosambi
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 208
________________ संशयित श्लोकाः । भ्रूभङ्गवीक्षणकटाक्षविलोकितानि कोपप्रसादह सितानि कुतः शशाङ्के ॥ २६२ ॥ न संसारोत्पन्नं चरितमनुपश्यामि कुशलं विपाकः पुण्यानां जनयति भयं मे विमृशतः । महद्भिः पुण्यौघैश् चिरपरिगृहीताश् च विषया महान्तो जायन्ते व्यसनमिव दातुं विषयिणाम् ॥ २६३ ॥ नायं ते समयो रहस्यमधुना निद्राति नाथो यदि स्थित्वा द्रक्ष्यति कुप्यति प्रभुरिति द्वारेषु येषां वचः । चेतस् तानपहाय याहि भवनं देवस्य विश्वेशितुर् निर्दोवारिक निर्दयत्तयपरुषं निःसीमशर्मप्रदम् ॥ २६४ ॥ ww निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् । १०३ 858 ( 59 ) . ] -- 3 ) E2 यत् ( for यः ). A0-2 शशिनश्च. A समं करोति. - ) E भ्रक्षेपसस्मित - ; Hक्षेपविस्मित- 2 3 - निरीक्षितानि ; H1. 2 - निरीक्षणानि (for - विलोकितानि ). - ' ) E2 'हसितं च (for 'तानि ). H1.2 कुतश्च चंद्रे. BIS. 3119. Subhash 14; Sp. 3323 (Sridhanadadeva ) ; SRB. p. 262. 188; SBH. 1977; SRK. p. 278. 4 ( Sphutasloka); Kavindravacanasamuccaya 246; SHV. app. II. f. Sb. 85 (Dhanada); SK. 5. 155; U. 276; SL. f. 3b; SLP. 4. 14 263_ { V} Om. in C X. GVs 2387 $ extra 3, and V6. – ) B2 DEI पुण्योधैश. V चिरमपि (for चिरपरि ). G1 M. 2.1 °ता हि; I ( by corr.) तार्थ (for 'ताश्च). d) G1 Y7 महन्तो. Y2. 3 इह; GM अपि ( for इव ). A हातुं; Is जेतुं ; Jat धातु; Cat दातुर. Est + (m.v. as in text ) व्यसनिनां ; Xs विषविनां. BIS. 3476 (1184 ) Bhartr. ed. Bobl. Haeb. lith ed, I and II, and Galau 3. 3; SRB. p. 368. 43; SBH. 3455 (Bh.); SSD. 4. f. Sb. 264 { V} Found in C D E F 3-5; DU V41 [ Also ISM Kalamkar 195 V 63 (65); BORI 328 V 108 (106); Wai 2 V 34; Jodhpur 3 V 103 (102); NS3 V52 and V97]. - 4 ) C नायातः (for नायं ते). C निद्राति नाद्यापि हि ; F3 निद्रा न बाधो न हि FBU निद्राति नाथो न हि - १ ) D E2. 4. 5 द्रक्षति; F3 हृप्यति ; F+ BU द्रक्ष्यसि ( for द्रक्ष्यति ). I पाल्यति; BU पाल्यसि ( for कुप्यति ). Fs ये मां (for येषां ). °) Es ते च स्थानपहाय. E: पाहि (for याहि ). C पदवीं (for भवनं ). F3 वै सेवितुं ; F विश्वप्रभोर (for विश्वेशितुर् ). (d ) F BU नो दौवारिक- C - निर्भयोक्ति-; D F3-5 BU - निर्दयोक्ति (for - निर्दयोक्त्य ) F1⁄2 - पुरुषं (for -परुषं ). C संवित्पदं; Eo शर्मप्रदः; F 'संपत्प्रदं. Jain Education International BIS. 3612 (1550 ) Bhartr. in Schiefner and Weber p. 23. lith ed. II. 3. 40. 265 {N} Om. in X Y1 G2 33, Goa, Adyar XXII B-10, and Mysore 1642, Found in GVS 2387 twice as N11 and N 24. - a) F3 निंदंति. C अथ (for यदि ). For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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