Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 37
________________ ४] मुनिश्रोवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहःण । सत्पदअसमत्तपणिदितिरिय-सव्विगविगलऽक्खपंचकायेसु (गीतिः) दंसणिग्यसुग्दुगणर-तिगविउवाहारसत्तगुच्चाणं ॥२१०॥ णवरि विणा सयलागणि-वाऊसु णराउगं अपजणरे । विगलब्धिगवीमाए, णरतिगउच्चणमतिरियाऊणं॥२११।।(गीतिः) णराउगइपणिदिय-सुहगादेयजमतसतिगुच्चूणा । (गीतिः) तिणरविरईसु णिरय-व्वाणतपहुडीसु विण तिरिक्खार ।।२१२।। दुपणिदितसमवीसु ति-तमसुभगादेयज सपणि दणा । (गीतिः) असमत्तपणिदितसे, विगलव्व पर सतिरियाऊ ।।२१३।। अस्थि तिमणसच्चवयण-सुक्कासु सयलघाइआऊणं । तेरसणामाण तहा, आहारगसत्तगजिणाणं ॥२४॥ तेत्तीमघाइआउग-च उगजिणाहारसत्तगाण तहा । तेरसणामाणऽत्थि उ. दुमणवयतिणाणओहीसु ॥२१५॥ सगचत्तघाइआउग -चउक्कदेवदुगतेरणामाणं । विउवाहारगसत्तग-तित्थाण हवेज्ज दुवयेसु ॥२१६।। हवए कायउरलदुग-कम्माहारेसु घाइपाऊणं । जिणतेरणामणरसुर-दुगविउवाहारसत्तगुच्चाणं । २१७ । (गीतिः) चउआउतित्थदंसण-आहारगसत्तगाण वेउव्वे । ते उपउमासु देसे. सम्मं विण वेअगे एवं ।।२१८॥ आहारदुगे णेया, दंसणसत्तगसुराउतित्थाणं णपुमदुवेाण कमा, इत्थीपुरिसेसु वेएसु ॥२१९।। तीसु वि थीणद्वितिगति-दसणवारसकसाय आऊणं जिणतेरणामणरसुर-दुगविउवाहारसत्तगुच्चाणं ॥२२०।। (गीतिः)

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