Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [ ५७
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तह आहारगसत्तग-देवाऊणं व णियमओऽण्णेसि । एमेव दुणिदाणं, णवरं णियमाऽण्णएगाए ॥६०४।। मोहिगसंतम्मि सिआ, सुराउआहारसत्तगजिणाणं. मोहाण सठाणव्य उ, णियमाऽण्णाण णवरमवेए IASkin थीणद्धितिगाईणं, पुमचउसंजलणहस्सछगसंते कई मोलसपयडीण सिआ, सिं उण मज्झिमकसायव्य ॥६० ।। सेसाणोघव णवरि सव्वत्थ विणाऽस्थि णिश्यतिरियाऊन सव्वह णियमा सत्ता, अस्थि परतिगुच्चगोआणं । । सुरदुगविउवसगाणं, णियमाऽस्थि अचरमखयपयडिसंते। एगे चरमखयपयडि-संते व गराणुपुबीए ॥६०८॥ णामाण केवलदुगे, सट्ठाणवेगणामसंतम्मि । णियमा-ऽण्णेसि णवरं, सिआऽस्थि मायियरणीआणं ।।६०९॥ गरगइपणिदितसतिग-सुहगादेयजसतित्थयरसंते मणयाणुपुविसंते-ऽण्णे णीअण्णाण सुरगइजिणव्व ॥६१०। (गीतिः णत्थि णिरयाउसंते, देवाउस्स दुअणाणमिच्छेसु । सत्ता सिआ दुदंसण-दुआउआहारसत्तगाजणाणं ॥६११॥(गीतिः) णियमा-ऽण्णाण सुराउ-स्सेवं ण जिणस्स वा गराउस्स । (गीतः) जिणसह णाऽऽहारगसग-तिरियसुराऊण णियमओऽण्णेसि ॥६१२॥ सेसाण अपजतसन्च णवरि णिश्यामराउगाण सिआ । सव्वह-ऽणाहारगसग-तिरियाउगसह जिणस्स सिआ ॥६१३॥

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