Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाणिसमलङकृतोत्तरपडिसत्ता [ ६५ चउअणमिच्छाइतिगअ-संते तिचउअणपणछदंसाणं । (गीतिः) णियमा कममोऽस्थि सिआ, सेसाणोघव्व एगवीसाए ॥६८४॥ विण चरमलोहमेवं, समइअछेएसु णियमओ छण्हं । सम्मअसइ परिहारे, देसे एमेव मीसस्स ॥६८५॥ णवरं सम्मम्म सिपा, मिच्छ असंते दुदंसणाण सिआ।(गीतिः) णियमा-ऽणाण अणेगअ-संतेतिण्हणियमा सिआ तिण्हं ॥६८६॥ असायब्ध उ सुहमे, सप्पाउग्गाण मोहपयडीणं । सट्ठाणसणियामो, जाणेयव्वो असत्ताए ॥६८७॥ खड़ए विण दरिसणसग-मोघव्व उ उवसमेऽणिगासंते। (गीतिः) णियमा तिअणाण भवे, देसव्व उ वेअगे विणा सम्म ॥६८८॥ मिस्से सम्मासह णो, अणाण सम्मस्स ण अणिगासते । तदितरतिगस्स णियमा, मयन्तरेणऽस्थि विण सम्मं ॥१८॥ व जिणस्सा-ऽहारसगा, गिरयतिपढमाइणिरयदेवेसु । सोहम्माइछवीसा-सुरविउवदुगेसु भिंगे ॥६॥ परिहारे तह देसे, तेउपउमुवसमवेअगेसु च । एगासंते छह धुवाऽऽहारसगस्स वा जिणअसंते ॥६९शा(गीतिः) सेसेसु जिरयेसु', भवणतिगे मीससासणेसु च । आहारसगा एगअ-संते णियमाऽण्णछण्हऽस्थि ॥६९२।। सबतिरियएगिदिय-विगलिंदियपंचकायमेएसु । असमत्तपणिंदितसअ-मोस णिरयदुगिगासंते ॥६९३॥

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