Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ हेमन्तप्रमाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [ ७५
अजया-ऽसुहलेसासु स-जाईण सठाणगध वा-उण्णेसि । पररि तिरियाउणा सह, णरदुगउच्चाण व भवे ।।७८४॥ अणमिच्छासंते णो, विउवेगारसगणरदुगुच्चाणं । ण विउविगारसगणरदु-गुच्चासंतेऽणमिच्छाणं ।७८५॥ सम्माउदुगाण धुवा, णराउणोणरदुगुच्च असइ धुवा । (गीतिः) उच्चस्स गरदुगासइ, धुवुच्च असइ गुणवीसणामाणं ॥७८६।। जयणेयरसण्णीसु, सजोग्गपयडीण होई ओघव्व । णवरि तिरियाउणा सह, गरदुगउच्चाण उ विरोहो ॥७८७।। धुवसत्ताहि विरोहो, णरसुरदुगविउवसत्तगुच्चाणं । (गीतिः) सह अणमिच्छरहि अधुव-सत्ताहि णराउगस्स उ विरोहो ७८८॥ इगअसइ सजाईण अ-भव्वे सट्ठाणगव्व वाऽण्णेसि ।
वरि तिरियाउणा सह, गरदुगउच्चाण ण असत्ता ॥७८६।। णियमा-ऽऽउदुगस्स विउवि-गारसगासह तिघाउउच्चाण। (गीतिः) गरदुगअसइ धुवुच्चा-ऽसड होइ तिआउविउविगारण्हं ',७६०॥ ओघन्च सजोग्गाणं, सम्मे खइए परे असत्ताऽस्थि । दरिसणछगस्स णियमा, सम्मासंते.ऽणमिच्छाणं ॥७९१।। मीसासंते णियमा, णिरयदुगस्सऽस्थि थीणगिद्धिव्य । गयवेअव्व मणयदुग-सुरदुगविउवसगउच्चाणं ॥७९२॥ अमणे सट्ठाणब्व स-जाईजणाण व णवरं णियमा । सम्मगमीसासंते, आहारगसत्तगरस भवे ॥७६३।।

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