Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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६४ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [सन्निकर्षछण्णदरिसणाण सिआ, सम्मासह विउवकिण्हणीलासुरौं । मिस्सासइ सम्मस्स उ, णियमा प्रत्थि सिआ ऽणमिच्छाणं ॥६७४॥ मिच्छअसंते दरिसण- सेसछगस्स णियमा ऽणिग असंते । सेस अतिगस्स भवे, णियमा दंसणतिगस्स सिआ ॥ ६७५ ।। नियमा आहारदुगे, हवए सेसस्स दंसणछगस्स । ( गीतिः) दंसणतिगिग असंते, -ऽणिग असदिधुवाऽण तिन्ह तिन्ह सिआ । ६७६ । सम्म दुगेग असंते, थीअ सिआ पणरसण्ह उ असत्ता । मिच्छ असंते नियमाणाऽगारसह सिआ ||६७७॥
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तिअणाण धुत्रा अणिगअ-संते वाऽण्णाण उ णपुमअसंते । नियमाणे असंते, णपुमस्स सिआ धुवा ऽण्णेसिं ॥ ३७८ ॥ थिव्व पुमे सव्वह उव, थीअ धुवा सोलसण्ह थीअसइ | ( गीतिः ) इस्सछगस्स वि एवं मयंतरे थिव्व अणपुमं णपुमे ॥६७९॥
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दरिणि असंते गय- वेए नियमा ऽण्णदसणाण सिआ । सेसाण संजलणपुम- इस्सछगाणऽत्थि ओघव्व ॥ ६८०॥ से से असंते खलु, चउसंजलण महस्सछक्काणं । एगारसह तु सिआ, नियमा सेसाण पयडीणं ॥ ६८१ ॥ ओघन्न तिकोहाइसु, वरि कमा अचउतिदुगसंजलणा । अकसाए अहखाए-ऽण्णद सणा रोगदंसणा संते ॥ ६८२ ॥ ( गीतिः ) नियमा सेसाण सिआ, नियमा सेसाण सेसिगअसंते । चरणाण संजमावहि सम्मेसु होअह असत्ता ॥६८३॥

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