Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ ६२ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे सन्निकर्षमंनमअहखायसुइल-भविसम्मत्तखइएसु आहारे सट्टाणसणि यामो, ओघव्य भवे असत्ताए ॥६५४। दुनणवयण चउणाणति-दरिसण मण्णीसु होइ णिद्ददुगा । एगअसंते णियमा, चउण्ड णि ण उ असत्ता ॥६५५॥ एगस्म अमत्ताए, थीद्धितिगाउ दोण्ह इयरेसि । णियमा होइ असत्ता, णिहापयलाण होइ सिआ ॥६५६॥ वदरिसणावरणओ, एगअसंते असत्तरलमीसे । कम्माणाहारेसु, णियमा सेसाण अट्ठण्हं ॥६५॥ वेअतिगकसायचउग-समइअछेअसुहमेसु इयरेमि । दोण्ह असत्ता णियमा, थीणद्धितिगा इगअसंते ॥६५८॥ अंतिमवज्जणिरयमग-सुरामा-ऽवहिसुरेसु वा-ऽण्णस्स । एगाउअसंते ण अ-पज्जपणिदितम-उरलमीसेसु ॥६५६॥ (गीतिः) तिरितिपणिंदितिरियणर-संजमसामहअछेअअमणेसु । दोण्ह विगाउ असंते, उरालदेसेसु तिरिणराऊओ॥६६०॥ (गीतिः) णिरयसुराऊहिन्तो, विउवदुगे | इयरस्सिगअसंते । (गीतिः) दोण्हऽणाऊण सिआ तीसु य तिण्हऽण्णिगाउगअसंते ॥६६१।। व अवेए अकसाए, सुराउअसइ इयरस्स णियमिहरा । ओघविगवण्णाए, चउआऊणऽण्णहिं णस्थि ॥६६२।। णिस्यऽज्जतिणिरयतिरिय- पणिदितिरितस्समत्तदेवेसु । इंगवीसाइमकप्पप--मुहगेविजंतदेवेसु ॥६६३।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138