Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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५६ ] मुनिश्रीवोरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे । सन्निकर्ष
मोहाणं विउवदुगे, भवे सठाणच मोहइगसंते । होइ सिआ-ऽऽउ-जिणा-ऽऽहारसत्तगाण णियमाऽणे सिं ॥५६४॥ सेसाण पुमव्व णवरि, तिरियाउजिणाण ण जुगवं सत्ता (गीतिः) आउसठाणव्वा-ऽऽउग-सइ मिच्छस्म तिरियाउसइ णियमा॥५९५॥ दंमणसत्तगसंते, आहारदुगे भवे सठाणव्व । मोहाण वा सुराउग-जिणाण होइ णियमा-ऽण्णेमि ॥५९६॥ दसणसगतित्याण व, सुराउसंतम्मि णियमओऽण्णेसि । जिणसंते दंसणसग-देवाऊणं व णियमओऽण्णेसि ॥५६७॥(गीतिः) सेसिंगसंतम्मि सिआ, दंसणसत्तगसुरारतित्थाणं । सत्ता णेया णियमा, सेसछचत्ताहियसयस्स ॥५९८॥ मोहाण सठाणव्य उ, संजलणतिवेअहस्सछगसंते । वेअकसायेसु सिआ, सोलसथीणद्विअधुवसत्ताणं ।।५९६॥ (गीति:) णियमा-ऽण्णेसिं सोलस-थीद्धितिगाइसेसमोहाणं । (गीतिः) णिरयतिरिसुराऊण वि, ओघव्वऽण्णाण चरमलोहव्व ॥६००॥ णवरि ण जिणसंते तिरियाउस्स सठाणगव्य णामाणं । (गीतिः) जामिगसंते णियमा, गराउसंतम्मि गरदुगुच्चाणं ॥६०१॥ णियमुच्चस्स उ सुरदुग-विउवाहारसगसंतकम्मेऽस्थि । णियमुच्चगोअसंते, मणुयदुगस्स हवए सत्ता ॥६०२॥ पणविग्घणवावरणिग-संतेऽवेअअकसायअहखाए मोहणिहासोलस-थीणद्वितिगाइतित्थाणं ॥६०३॥

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