Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोपज्ञ - हेमन्तप्रभाचूर्णि समलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता | ५६ सोलसथीणद्धियतिग पमुहान वि चरमलोहस्ते वा । (गीतिः ) सत्तरीणद्धि तिग-प्पमुहऽण्णाण प्रेमचरमलोहव्व ॥ ६२४ ॥ अजया सुहले सासु जिणस्स हवए चिउव्वजोगव । सेमाण तिरिव्व णवरि, मोहसठाणव्व मोहसइ || ६२५|| आउमठाणव्वा ऽऽउग सह मिच्छस्स उ सिआ-ऽऽउदुगसंते । तिरियाउस्स व सव्वह, तिरियाउं विण जिणस्स सिआ । ६२६ ।। सन्त्रप्पयडीण णयण - अणयणसणीसु कायजोगव्व । णवरं णियमा सव्वह, णवावरणपंचविग्याणं ॥ ६२७॥ सङ्काणन्त्र अभविये, णामाणं अधुवणामसत्ताए । ( गीतिः ) आऊण सिआ णरदुग-संते उच्चस्स विनियमाणे सिं ॥ ६२८|| सेमाण णरदुगव्व उ णवरं णारगसुराउसत्ताए । ( गीतिः) आउसठाणचव धुवा, विउवेगारसगण दुगुच्चाणं ॥ ६२९॥ णियमा णराउसंते, मणयदुगुरुचाण उच्चसंते उ । णियमा मण्यदुगम् य सित्राऽत्थि सेसेगसंते से ||६३० ॥ सपरप्पहाणदंसण-सत्तगहीणो वेज सम्मव्व 1 खइए णवरि ण जुगवं सत्ता णिरयतिरियाऊणं ॥ ६३१ ॥ सङ्काणव्व उवममे, मोहिगसंतम्मि होइ मोहाणं । चउआउजिणाहारग-सगाण वा-स्थि नियमाऽण्णे सिं ।। ६३२ || मिच्छन्वण्णाण णवरि, जिणतिरियाऊणण जुगवं सत्ता । तह णिरयसुराऊण वि, एवं तित्थरहिओ मीसे ॥ ६३३ ॥

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