Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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२०] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे
काल.
तिणरेसु मुहुत्तंतो लहू, उ धुवघाइतेरणामाणं । (गीतिः) देमूणपुवकोडी, गुरू परमणाण तिपलिऊणहिया ।।३४७॥ मिच्छस्सऽणव्व दोसु, आउजिणाणं लहू मुहत्तंतो । सेसाण खणो सुरदुग-विउवसगाणं गुरू मुहुत्तंतो॥३४८॥ (गीतिः) दंसणआउगदुगजिण-आहारसगाण जेट्टकाठिई । देवाउस्सूणा सा, सेसाण गुरू वि समयोऽस्थि ।।३४६।। तिरियव्व सजोग्गाणं, एगक्खे ऊणहस्सकायठिई । मणयाउम्स जहण्णो, सेसेगक्खऽग्गिवाऊसु ३५०॥ सेसाण लहू समयो, गुरू गुरुठिई ममाण एमेव । विगलतिकायपणे सु गरदुगुच्चगुरू पर मुहुत्तंतो ।। ३५१।। (गीतिः) दुपणिदितसेसु णर-व्वऽखिलाण दुहा पणिदितिरियव्व । गरदुगउच्चाण लहू, तमुहुत्त गराउस्स ॥५२॥ परमाउतिगस्स गुरू, अयरसयपहुत्तमस्थि जेट्टाठई । सम्मगमीसणराउग- पाहारगसत्तजिणाणं ॥३५३॥ तेत्तीसा मिच्छस्स अयराऽहिया.ऽणाणउण दुतीससयं । सुरदुगविउवसगाण दु-तसेसु संखियसहस्ससमा ॥३५४ । सव्वाण लहू पणमण-वयविउवाहारचउकसाएसु । समयो अंतमुहुत्तं, गुरू कहिचि काणचि विसेसो ॥३५५॥ कायुरलेसु जहण्णो, समयो सव्वाण गरदुगुच्चाणं । जेट्ठो असंखलोगति सहस्सवासा कमा यो ॥३५६ ।

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