Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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मुनिश्री वीरशेखर विजयरचिते सत्ताविहाणे ( काला
खइअसम्मत्तमग्गणाअ गराउग-सुराउग ! -ऽऽहारगसप्तग-जिणणामाणं दसण्ड पयडीरण उत्तपमाणो सादिसंत भंगो वि प्रसत्ताकालस्स हवदि, णराउवज्जाण णवण्ह खइअसम्भन्ते लद्ध सदि जहष्णुककोसओ जहतकाले गए सत्ताकाललाहादु, पर उसत्तान्तरस्स तहत्तणादु ।
प्रणाहारमग्गणाअ चुलसीदिपयदीपण जहुतमिश्रो सादिसंतमङ्गगदो वि प्रसत्ताकालो जहसंभवं केवलिसमुग्धाद विग्गहृगद्द पञ्च भवदि ।
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ओहव्व मश्रणाणणा-संजमा ऽचक्खु भवियाम वियमिच्छत्तमग्गणासु सप्पाउग्गाण असत्ताकालो भुर्वाद, नवरं सिद्धाणमपवेसेण सादिश्रणंतभंगगदो असत्ताकालो ण लब्मदे । तेण धुवसागाण पयडीण सादिसंतभंगगदो य्येव श्रसत्ताकालो लब्भदे, त जहा - प्रसंजम मग्गणाश्रमिच्छत्ता ऽणताणुबंधिचउगाण प्रसत्ता कालो उक्कोसो साहियतेत्तीससागरोत्रमाणि, जहण्णो अंतमुहत्त, एमबीस सत्ताठास खइप्रसम्मद्दिट्टिस्स वा कालस्स तहत्तणादो, अनंता बंधिनउगस्स उण चउवीससत्ताठा रण कालस्स वि तहत्तणादु ।
प्रचक्खुदरिसणमग्गणा णिदुगस्स दुविहो वि असत्ताकालो समयो हवदि, खीणक सायदुचरमसमये तस्स विच्छेदादु खीणकसायचरमसमये मग्गणाअ उच्छेदादो य । सेससप्पा उग्गघादिधुवसत्ताण दुविहो वि असत्ता कालो अंतमुद्दत्तं, आसां खवगसेढीश्र विच्छेदे जाए मग्गण व कालस्स तत्तणादो ।
भविमग्गणाश्रमिच्छत्तस्सुक्कोसो असत्ता कालो साहियत्तेतीससागरोवमाणि, जहण्णो प्रांत मुहुतं, एगवीससत्ताठाणस्स खश्रसम्म. छिट्टिस्स वा कालस्स तहत्तणाद धुवसत्ताण अरणताणबंधिच उगवज्जसेसघादिपयडीण तिरियेगारसगस्स यत्ति एगवण्णा प्रसत्ताकालो : उक्कोसोदेसूणपुव्वकोडी, जहणणो अंतमुहुत्तं, प्रासां विच्छेदे जाए

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