Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 83
________________ ५० ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे [ सन्निकर्षव जिणाहारसगाण, सेसाण णियमओ तिरिव्व भवे । दुअणःण अजयतिअसुह-लेसामिच्छेसु णामाण ॥३५॥ णवरि व जिणस्स सव्वह,वा-ऽऽहारगसत्तगस्स जिणसंते। (गीतिः) णियमा-ऽण्णाणा-ऽऽहारग-सत्तगतित्थाण तीसु णो जुगवं।। ५३६।। णिरयगस्स अभविये, सुरदुगसंते व णियमओऽण सिं । एवं णिरयदुगस्स उ, हवेज मणुयदुगसंतम्मि ॥५३७।। सत्ता णिरयामरदुग-वेउब्वियसत्तगाण होइ सिआ । णियमाऽण्णाण विउव्विय-सत्तगसंतम्मि होइ सिआ ॥५३८।। णारगदेवदुगाण, णियमा-5ण्णाण इयरेगसंते वा । णिरयणरसुरदुगविउव-सगाण होइ णिश्माऽण्ण सिं ॥५३६ । मीसे तह सासाण, आहारगसत्तगाउ इगसंते। (गीतिः) णियमा-ऽण्णाण उ सेसिंग-संते आहारमत्तगस्स सिआ॥५४०॥ विग्घणवावरणाओ, संते एगस्स अधुवसत्ताण । पणणिद्दमोहतिरिदुग-जाइच उगथावरायवदुगाणं ॥५४१॥ (गीतिः) साहारणस्स य सिपा, णियमा सडमीइसेसपयडीण । एमेव दुणि हाण, गवरं णियमाडण्णएगाए ॥५४२।। थीणद्धितिगतिरियदुग-जाइचउगथावरायवदुगाओ । साहारणा य संते, अण्णयराअ इगपयडीए ॥५४३॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138