Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोपज हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ ५३ मिच्छस्स वि तीसु सिआ, सुराउ संते नराउसंते वा । णिग्यसुग्दुगविउविय-सगाण तीसु णियमाऽण्णेसि ।।५६४॥ सेमाण पुमव्य वरि, मणुयद्गस्म णियमुच्चसंते उ । णियमुच्चस्म णिरयसुर -दुगविउवाहारसगसंते ॥५६॥ ण मसठाणन धुवा, तिरिच्छि अमणेस मम्ममीसाण । आहारगमगसंते, पणिदितिरिये अपज्जत्ते ॥५६६॥ सव्येस एगिदिय-विगलिंदियपुह विदगवणेसु च । मत्ताऽन्थि सम्मसंते, णराउआहाग्मत्तगाण सिआ।।५६७१(गीतिः) णियमाऽण्णेसि एवं,मीमस्स णवरि सिआऽस्थि मम्मम्स । (गीतिः) वीसअधुवसत्ताण, गराउसंते व णियमओऽण्णेसि ।।५६८॥ णाममठाणव्य अधुव-णामसइ व सम्मदुगणराऊण । (गीतिः) णियमाऽणाण णवरि सइ, आहारसगे दुरिसणाण धुवा ॥५६६॥ परदुगसइ वुच्चस्स उ, दुगव्य से गवरि णरदुगस्स धुवा । सेसिगमइ चउवीसअ-धुवाण वा.ऽण्णाण णियमा-ऽस्थि ॥५७०।। सव्वाणोघव्यऽत्थि ति-रणरेसु परमत्थि परतिगुच्चारण। णियमा सव्वह तेरस-संते व णराणपुवीए ॥५७१॥ आउसठाणव्व विउवि-गारसगस्स तिरियाउसइ रिणयमा ।(गीतिः) दुणरेसु माणुसीए, हस्सछगस्स णियमाऽत्थि पुसंते॥५७२।। असमत्तपणिदितिरिव्व अपज्जणरे-ऽखिलाण णवरि सिआ। तिरियाउगस्स सम्बह, मणुयतिगुच्चाण णियमा-ऽस्थि ॥५७३।।

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