Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
View full book text
________________
३६ ]
मुनिश्रोवार शेखर विज रचिते सत्ताविहाणे । अन्तर
सप्पाउग्गाणतर-मचक्नुभवियेसु हाइ प्रोघव्व ।
वरं जिणस्स ण पलिय-असंखभागो अचक्खुम्मि ॥४५०।। होइ लहुं णरसुरदुग-विवाहारमगउच्चगोआणौं । अमणे ण सम्ममीमति-आउगाहारगमगाण । ४५१।। पल्लासंखंमो सुर-णिग्यदुर्गावउवमगाण होइ दहा । तिरियव्य भवे दुविहं, मणुम्सदुगउच्चगा प्राण ॥४५२।। लहुमोघव्याहारे, मम्मणिग्य जुगलचउ प्रणाऊण । णपुमव्व उ णरसुरदुग-विउवाहारसगउच्चाण ॥४५३ । णण्णाण भवे जेट्ट, चउ प्रणतिरियाउणरदुगुच्चाण । ऊणा गुरुकायठिई, तेवीसाएऽस्थि ओघव ॥४५४।। सप्पाउग्गाणंतर-मण्णह सव्याण णथि गवरि दुहा । आऊण मुहुत्तंतो,असमत्तपणिदियतसेसु ॥४५५।।
(हे.च.) "सत्ताम"इच्चाइ, तेवण्णगाहा अंतरदारसंबंधिणी। तत्थ ओघत्तो एगाअ गाहान सत्ताम, अण्णान असत्ताअ आएसत्तो बावीसान सत्ताम एगूणतीसान गाहाहिमसत्ताअ अंतरं णिरूविदं ।
मोहा-ऽऽएसेहिं जाण सत्ता प्रसत्ता य सकयं लग्भवे तारण कमसो सत्ता असत्ताअ य अंतरं त्थि । सामाणदाअसत्ता कालसमं सत्ताम अंतरं दुविहं होदि, सत्ताकालतुल्लं य असत्ताप अंतरं दुविहं भवदि. णामंतरेण अविसेसादु । केवलमिह सादिसंतभंगगदो य्येव कालो अदिदिट्ठो बोहव्वो, अंतरस्स तहत्तणादु । कत्थ वि समाणतणे वि किछिविसेसो, कत्थ वि उण विसेसो वि ।

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138