Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम् ] स्वोपन हेमन्तप्रभाणिसमलकृतोत्तरपयडिसत्ता (४१
देवोध-सुक्कलेसामग्गणादुगे सम्मत्तमोहणीय मिस्समोहणीयाऽणंताणुबंधिचदुगाण छण्ह जेटुमसत्तरं देसूणेगतीससागरोवमाणि, णवमगेविज्जयसुरास्सयेण इह जहुत्तंतरस्स संभवादो सत्तान पुण कालस्स अणुत्तरसुराविक्खाम तेत्तीससागरोवमलाहादो।
पंचिदियोघ--पय्यत्तचिदिय-तसकायोह-पज्जततसकाय-संजमोघ-खइअसम्मत्तमग्गरणाछक्के आहारगसत्तगस्स जहण्णमसत्तरं अंतमुहुत्तं भोदि, सत्तालाहे सदि अतमुहुत्तेण पुण अजोगिदुचरम. समये विच्छेदादो, जहण्णसत्ताकालस्स तु मग्गणंतर गमगंण समयमत्तस्स वि संभवादो।
थीवेद-पुवेद मदिअणाण-सुपाणाणा-संजम मिच्छत्ता-ऽऽहारि मग्गणासत्तगे. सुराउस्स, गपुसगवेद-मदिअणाण-सुदाणाणा-संजममिच्छत्ता- हारिमग्गणाछक्के गिरयाउस्स य साहियदससहस्सवामाणि, वेदमग्गणातगे गराउस्संत मुहत्तं, मदिणाण-सुदणाणाहिणाणो-धिदसण-खग्रोवसमसम्मत्तमग्गणापंचगे गराउस्स वासपुहुत्तं जहण्णमसत्तरं भवदि. साबाधाउजहण्णहिदीन तहत्तणादो।।
गपुमगवेदा ऽसंजममग्गणादुगे प्रणंतागुबधिचदुगस्स जेट्टममत्तंतरमोघव्ध देसूणद्धपुग्गलपरावत्तो हुवदि, ओहत्तो विसेसस्स अमावादो, गुरुसत्ताकालम्स पुण धुवसत्तात्रणेण गुरुकाटिदिमाणादो विसेसभणणं।
मदि-सुदा-ऽवधिणाणतिगा.ऽवधिदरिसण -खमोबसामसम्मामग्गणापचगे जरा उस्स गुरु प्रसत्तर सादिरेगपुवकोडिवासाणि, गुरुठिदिबंधपमाणस्स तहत्तणादु, गुरुसत्ताकालस्स उण जुगलिन पडुच्च साहियपल्लोवमत्तिगमाणतणादु ।
असजममग्गणाम सुराउस्स जेटुमसत्तरं एगतीससागरोव. माणि, उक्कोसठिविबंधस्स तत्तिअमेत्तादो, गुरुसत्ताकालस्स उ अणुत्तरसुराविवखाअ तेत्तीससागरोवमप्पमितादो ॥४०३-४५५।।

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