Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
View full book text
________________
४६]
मुनिश्रीवारशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे । सन्निकप
सत्ता-त्थि अपज्जत्तग-पणिदितिरिणरपणिदियतसेसु । सवेगिदियविगलपणकातिअणाणमिच्छ अमणेसु।।४९६॥(गीतिः) सेमाण सम्मसंते, णियमा मम्मम्स मिस्ससंते वा । णियमा-ऽण्णाण व सेमिग-संते दोण्ड णियमाऽण्ण मि ॥४९७।। मोहस्सोपव्य भवे, दुणरपणिदितमपणमणवयेसु । (गीतिः) कायउरललाहणयण-प्रणयणसुक्कभविसणि बाहारे ॥४६८॥ ओघव्य माणुमीए, णवरं णियमा हवेज पुमसंते । हस्मछगस्स अणुत्तर-सुरेसु एगणसंतम्मि ॥४६६।। सगवीसार णियमा, णिस्यवऽण्णाण णवरिणियमाऽस्थि । दसणमोहदुगस्स उ, सत्ताए मिच्छमीसाणं ॥५००॥ एवं आहारदुगे, णिस्यव्य विउव्यकिण्हणीलासु । णवरं पंचसु वि भवे, चउत्थणिरयव्व सम्मस्स ।।५०१॥ थीअ ण सगसंते, णियमा संजलणणोकसायाण । सेसाण सिआ अडणो-कसायसंजलणचउगाओ ॥५०२।। इगमंते एगारस-तस्सेसाण णियमा सिआ-ऽण्णेसि । सेसाणोपब्वेवं, णपुमे णवरि णपुमस्स धुवा ॥५०३॥ पुरिसे अडवीसाए, मोहाणोघव्व णवरि हस्सव्व । चउसंजलणपुमाण', हवेज्ज पुरिसब्ध अण्णमए ॥५०४॥ गयवेए अकसाये, अहखाए होइ दसणसगस्स । आहारदुगव्य णवरि, मयंतरेण अणवज्जाण ॥५०५।।

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138