Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 78
________________ द्वारम् ] स्वोपक्ष-हेमन्तप्रमाणिसमलकृतोत्तरपडिसत्ता [४५ ओघव्वाऽण्णासु णवरि, खइए णिरयतिरियाउगाहिन्तो। एगाउगस्स संते, सत्ता व इयराउस्स ॥४८६॥ सत्ता सम्वेमु तिरिय-एगिदियविगलपंचकायेसु ।' असमत्तपणिदियतस-कायोरालदुगक.म्मेसु ॥४८७।। वेअतिगकमायचउग-दुअणाणाजयअचक्खुचक्खूसु ।। मिच्छकुलेसाअभविय मणि असणीसु आहारे ॥ ८८।। णीअम्म उच्चमंते, णियमा णीअस्स अस्थि ओघव्य । गोमाण य दुपणिदिय-तसेसु भविये अणाहारे ॥४८६।। उच्चम्सोधन तिणर-अवेअअकसायकेवलदुगेसु । संजम ग्रहखाएसु, सम्मत्ते खाइए यो ॥४९०।। उच्चस्म णीअसंते, णियमा सत्ता हवेज्ज सेसासु । अण्णयरगोअसंते, णियमा सेमस्म गाअस्स ॥४९१।। आघव्य णिरयपढमति-णिश्यतिरिक्खदुपणिदितिरियेसु । सुरबारसकप्पगणव-गेविज्जदुमीमजोगेसु ॥४९२॥ कम्मअजयकाऊसु, तेोपम्हासु तह अणाहारे । दसणसगस्स णवरं, अजयपउमतेउवज्जासु ॥४६॥ मिच्छस्स मिस्ससंते, णियमा वीसाअ सेमइगसंते । (गीतिः) दसणसगस्स उ सिआ,सेसणिरयभवणतिगतिरिच्छीसु॥४६४॥ णिरयव्व णवरि णियमा-ऽस्थि सम्मसंतम्मि मिच्छमीसाण। बारसकसायणवणो कसायसंते उ मिच्छसि ॥४६॥

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