Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 76
________________ द्वारम ] स्वोपज्ञ- हेमन्तप्रभाचूर्णिसमलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता । ४३ दुगपणिदितमतिग-सुहगा ssदेय- जस- तित्थणामाओ । (गीतिः) सते एगम्स भवे, जिणवज्जाण नियमा सिआपण सिं ॥ ४६६ ॥ वरि णदुगस्स सिआ णरदुगजिणरहिअसेससगसंते । रगड़ जिण संतम्मि व, णराणुपब्बी नियमा soणे ॥ ४६७॥ सुरद्रुगते तेरस - णामजिणाहारमत्तगाण सिआ । (गीतिः ) णियमा ऽण्णाण वं सग विवाण ं णवरि सुरदुगस्स सिआ।। ४६८ ।। आहारमत्तगस्स उ. संते वा तेरणामतित्थाण । नियमाऽण्ण सिं संते; एगाए सामाण तेरमणाममणुयसुर - दुर्गाविउवाहारसत्तगजिणाण' अस्थि मिआ सेमाण, मत्तग्णिामाण नियमाऽत्थि ||४७० || ओघ मणियासी, हवेज्ज मन्त्रासु पढमचरमाण' । ||४६६|| 1 तिणदु रणिदितस पण मण वय काय उरलेसु तहा 1189211 मयवेए अकमाये, णाणचउगमंजमेसु अहखाए 1 दरिणतिगसुक्क नवि-मम्मख असण्ण आहारे । ४७२।। णवत्री आवरणाण', ओघव्व तिवेअचउकसायेसु । सम अच्छे पसु नहा, सहमे श्रीणद्वियतिगस्स बीआवरणऽण्णलगा, मने एगा नियमओ सत्ता सेमाण पंच. सिआ उ थीर्णाद्वियतिगस्स सेसासु मग्गणासु, बीआवरणणवगाउ एगाए मंने जियमा सत्ता, हवेज्ज सेमाण अड्ड 118061 ।।४७३ । 1180811 !

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