Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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२४] मुनिश्री वीरशेखर विजय रचिते सत्ताविहाणे
| काल.
अणमिच्छा उजिणाण अ-सुइलेसासु लहू मुहुत्तो । (गीतिः) मिच्छणिरया उणरदुग-विउवेगारसग उच्चगाण गुरु || ३८७॥ णवरं मिच्छस्स गुरू, काऊन तिसागराऽब्महिया । माण लहू समयो, गुरुकायठिई गुरु यो || ३८८ | | ( उपगीतिः) वरि अणाणं ऊणा, तिरियाउस्स उण किण्हाए । ( उद्गीति ) समयो लहू दुदंसण - आहारसगाण तिसुहलेसासु ॥ ३८९ ॥ सेसाण मुहुर्त्ततो, गुरू सुराउस वि दुसु जेठिई । अट्ठारसह पुव्वा, चउवण्णाअ सुइलाअ कांडूणा || ३६० ॥ गीतिः) भविये अंतमुहुत्तं, दंसणस गर हिअघाइचत्ताए । तिरियेगारसगस्स य, लहू गुरू ऊणपुब्वकोडी उ ।। ३९१ । । (गीतिः ) दुविहो समयो णेयो, धुवसत्ताणं अघाइसेसाणं 1 सगसडीए - Sण्णाण अ-चक्खुव्व अणाइणंतविणा ||३९२ ||
साइअतो हवेज्ज सव्वेसिं ।
साइअधुवो विकमसो, सोल-दसण्हं लहू मुहुत्ततो || ३६३ ।। (गीतिः ) रणूणा तेत्तीसुदही, गुरू णराउस्स तह सुराउस्स । ( गीतिः ) सम्मे अहियतिपञ्चा खइए - ऽण्णेसिं भवत्थजेडटिई ॥ ३९४ ॥
सम्मत खाइए, सम्मत्तखाइए,
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परमाहारसग जिणाण खणो ऽण उ खइए णराउस्स चुलसीइस हस्ससमा, तित्थगुरू पुव्वकोडितं संतो || ३९५ । । (गीतिः) सव्वाण वेअगेऽण, महव्व जेट्टो उ मिच्छमीसाण । अंतमहुतं ऊणा, तेतीसुदही णराउस्स ॥ ३६६ ॥

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