Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
View full book text
________________
द्वारम् ] स्वोपज्ञहेमन्तप्रभाचूर्णिसमडलकृतोत्तरपडिसत्ता [ २३
सव्वाण केवलदुगे, साइप्रणतोऽस्थि साइणंतविणा । (गीतिः) ओघव्व सजोग्गाणं, दुअणाणाजयअभवियमिच्छेसु॥३७७।। परमत्थि साइसंतो, वि चउसु तित्थस्स कायठिइमाणो । अजए अणमिच्छाणं, गुरू य अहियुदहितेत्तीसा ॥३७८॥ समयो लहू विभंगे, चउद्दसण्हाहियेगतीसुदही । णिरयाउस्सुक्कोसो, सेसाणं जेट्टकायट्टिई ॥३७९।। संजमअहखाएसु, घाइतिउहगवीसणामाण । (गीतिः) अतमुहुत्त तु लहू, गुरू गुरुठिई खणो दुहा-ऽण्णेसि ॥३८०॥ समइअछेएसु दुहा, दुविहठिई सगदुगाउतित्थाण । णवरि सुराउस्स लहू, अंतमुहुत्तं दुहा-ऽण्णेसि ॥३८१॥ सुहमे अंतमुहुत्त, सव्वाण दुहा परं लहू समयो । णेयो दसणसत्तग-आहारगसत्तगजिणाण ॥३८२॥ होइ दुहा परिहारे, देसे सव्वाण दुविहकायठिई । णवरि गुरू देसूणा, गुरुकायठिई सुराउस्स ॥३८३।। णयणे सणिम्मि दुहा, दुतसव्व परं खणो दुणिहाण । (गीतिः) दुविहो तु मुहुत्तंतो, विउवेगारसगखवगपयडीण ॥३८४॥ दुविहो पणणिहाण, बारकसायणवणोकसायाण । तिरियेगारसगस्स य, चक्खुव्व भवे अचक्खुम्मि ॥३८५।। मिच्छस्स मुहुत्त तो, लहू गुरू अहियजलहितेत्तीसा । सेसाण साइणंतं, विण बत्तीसाअ ओघव्व ॥३८६॥

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138