Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम } स्वोपज हेमन्तप्रभाणिसमलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता [ १६ सव्वणिग्यदेवेसु अ-सत्ताकालोऽस्थि सम्ममीसाणं ।। समयो लहू णवरि पण अणुत्तरेसु लहुकाठिई ॥३३७॥ भिच्छम्म महम्सपमा, चुलसीई णिग्यपढमणिरयेसु । खाइअसहुठिइमाणो, अण्णहऽणाण मुहुत्तंतो ॥३३८।। ऊणा लहुकायठिई, उगाहारमत्तगाण परं । (गीतिः) आहारमगस्स खणो. णिरयज्जणिरयसुरेसु भवणदुगे ॥३३६।। तित्थस्म लहुभवठिई सव्वाणऽस्थि गुरुभवठिई जेट्ठी । (गीतिः)
महियजलहिनिग, गिरये तइणिरये य मिच्छसि ॥३४०॥ णिरयदुगे तम्म अडसु. तिसु य अणाण णिग्यंतणिरयेसु(गीतिः) तिरियाउम्स सुराणय-पहुडीसु णराउगस्स मा ऊणा ।।३४१।। निरिये मिच्छरम अहिय-पल्लं व भवे लहू मुहुत्तंतो । अणच उगतिआऊणं, समयो तेवीमसेसाणं ॥३४२।। अणमिच्छतिपल्ला-ऽण्णो, असंखलोगा ऽथि गरदुगुच्चाणं। विउवेगारस्सूणा, गुरूकाठिई समा-डण्णेसि ॥३४३॥ विउवेगारस्स दुहा, अंतमुहुत्तं पणिदितिरियतिगे । तिरियन्वऽण्णाण लहू, गुरू तिपन्ला-ऽणमिच्छाणं ॥३४४॥ ऊणा गुरुकायठिई, देवाउस्सऽथि गरदुगुच्चाणं ।
तमुहुत्तं गेयो, सेमाणं जेडकायठिई ॥३४५।। वीसापज्जत्तेसु स-जोग्गाऊण दुविहो मुहुत्तंतो । सेसाण लहू समयो, अंतमुहुत्तं भवे जेट्ठी ॥३४६॥

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