Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 50
________________ द्वारम् ] स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रमाणिसमलङ्कृतोत्तरपयडिसत्ता [ १७ धुवसत्ताणोघअण-व्वत्धि उ दुअणाणअजयमिच्छेसु । सेसाण मुहुत्ततो, लहू गुरू होइ ओघव्व ॥३१७॥ णवरि लहू तीसु खणो, आहारसगरसहियिगतीसुदही । होइ सुराउस्स गुरू, अजए उण जलहितेत्तीसा ॥३१८॥ अजए जेठो साहिय-तेत्तीसुदही व सम्ममीसाणं । पल्लासंखियभागो, तीसु जिणस्स य मुहुत्तत्तो ॥३१॥ तित्थस्स मुहुत्तंत्तो, समयो व लहू जहागमं होइ । सयमुझो विभंगे, मिन्नमुहुत्तं गुरू होई ॥३२०॥ सेसाण लहू समयो भवे गुरू होइ सम्ममीसाणं । आहारसत्तगस्स य, असंखिययमो पलियभागो ॥३२१॥ णिरयाउगस्स अयरा, तेत्तीसा होइ तिरिणराऊणं । पुव्वाणेगा कोडी, देवाउस्सेगतीसुदही ॥३२२॥ सेसाणं जेट्टठिई, ओघन्च भवे अचक्खुभवियेसु । सव्वाण णवरि भवियेऽणाइअणंतो ण चेव भवे ॥३२३॥ लेसासु लहू समयो, दुदंसणाहारसत्तगाण तहा । वेउव्वेगारसणर-दुगउच्चाणं पि असुहासु ॥३२४॥ तित्थस्स सुहासु रवणो,हवेज्ज सेसाण छसु मुहुत्तंतो । पल्लासंखियभागो, आहारगसत्तगस्स गुरू ॥३२५॥ णिरयाउस्स सुहासु,देवाउस्स असुहासु सुक्काए । (गीतिः) तिरियाउस्स वि जेट्टो, मिन्नमुहत्तं अणाण समयो वा ॥३२६।

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