Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 39
________________ ६ ] मुनिश्रीवीरशेखरविजयरचिते सत्ताविहाणे | सत्पद-स्वामित्वउरि सत्ता ण लहिज्जदि, तस्सत्ताकाण सेढीआरम्भाभावादु । मयंतरेण पुरण तिरियाउस्स देसविरयासो णिरयाउस्स य अविरय. सम्मट्टिीओ गुणाणाप्रो उरि सत्ता रण सिपा, तस्संतकम्मिगाण सम्वविरयाइ रिणामालाहादो। जिरयेसु सुराउस्स सत्तमणिरये णराउस्स वि, देवेसु णिरयाउस्स, प्राणयपहुडिसुरेसु तिरियाउस्स वि लद्धि अपज्जत्तभेएसु एगिदिय-विलिदियभेएसु ओरालियमिस्स. जोगे य णिग्यसुराऊण विविकय मिस्सजोगे य णरतिरियाऊण बंधाभावेण तत्तस्संतकम्मिगाभावेण य सत्ताअ अभावो हवदि । बीप्र-तइ प्रगुणठाणे चउत्थाइणिरयेसु तिरिक्खेसु लद्धि अपज्जत्तेसु भवणवइ-वतर-जोइमसु रेसु असणीसु जिणणामसंतकम्मियाण अपवैसेण जिणणामबंधाभावेण य जिणणामस्स सत्ता ण हुवदि । जे प्रारिमा उसमसेढोप्रारंभे प्रणताणुबधोण उवसमणमंगीकरंति तेसिमहिपाएण अवे प्राइमग्गरणाच उगे ऽणताणुबंधिसना लहदे। अण्णहा-ऽवस्सं विसंजोजणाअ सत्ता ण होदि । केवल दुगे सजोगि वलिणो प्रासिज्ज जहुत्तपयडीण मत्ता लहदि । भव्व. पाउग्गदरूपयडी वज्जिअ सेसपयडीण सत्ता अभवे हवे। सिद्धाण पवेसे सदि सव्वपयडीणमसत्ता भवदि । मग्गणासु उण मग्गणापाउग्गाण मत्वपयडीण असत्ता बोद्धन्वा । जदो जाण पय होम सत्ता अस्थि ताण चिन पयडीण असतानवियारो कीरइ, जारण सत्ता य्येव ण भोदि ताण 'मूलं गतिथ कुप्रो साहा' त्ति णायेण वियारणाम चेव प्रणयगासो, प्रदो मग्गणापाउग्गाण त्ति उत् णेयं । धुवसत्ताकप्परहिप्राण अधुवसत्ताकाण पयडीण प्रसत्ता भुवदि, मधुवसत्ताकत्तणाचिय । जहसंभवं खीणसत्तगमत्था खाइप्र. सम्मदिट्रिमासिज्ज दसणसत्तगस्सा-ऽणताणबधिचउग-दसणमोह. नीयत्तिगलक्खणस्स विसंजोजणावेक्खा वि अणंताणुबंधिचउकस्स, सम्मत्तमोहनीय-मिम्समोहनीयाण पुण पुरिमुशाऽधुवसत्तागहे उणा वि प्रसत्ता विज्जदि । सेसपयडीण जहजोग्गं खोवगसेढो-ख णमोह

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