Book Title: Sattavihanam
Author(s): Virshekharsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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द्वारम | स्वोपज्ञ-हेमन्तप्रभाचूणि समलङ्कृतोत्तरपडिसत्ता | . णिरयतिरिक्खाऊणं, ओघव्व उवसमवेअगेसु खलु । (गीतिः) मिच्छाइतिगावरहिआ, अणस्म ण व उसमे अपुवाई ॥२५०॥ सवह असंतसामी, सजोगीवा पडुच्च ओघव्य । (गीतिः) समजोग्गाण परं जहि, खइआ ण तहि ॥ दुगस्त सम्माई॥२५१॥ तिदारसणाण तिरितिगे,देमा ण णराउगस्स उण खइए । गीतिः) णिरयदुगस्स ण मिच्छा, णवसु सुराउस्स ण दुइआमीसे ॥२५२॥ ___ हेचू०) “विग्ध०" इच्चाइगाहा चउवीसा सामित्तदारसक्का णिगदसिद्धा । तत्थ प्रोहदो गाहाटगेण सत्तासामो गाहातिगेण प्रसत्तासामी य त्ति एकादसगाहाहि भणिदं । पाएसत्तो मग्गरणासु गाहेगादसगेण सत्तासामो गाहादुगेण असत्तासामी यत्ति गाहातेरसगेण कहिदं । तस्थ प्रोहदो कम्मत्थवणामदुइअकम्मग्गंथेण संतपदेण य गयत्थं । तहाहि-खवगसेढि-उवसमसेढि-खाइगसम्मदिद्विप्राई पडुच्च नहा धुवाऽधुवसत्ताकत्तेण य समतान्तरं जहुत्तसामित्तलाहो संतपददरिसिदमयंतरेण तिरियणिरयाऊण सामित्तविसंसो। तहेव ससजीवमेा पडुच्च मग्गरमासु वि सत्ताऽसत्तासामिणो सयं या, सुगमपायत्ता। मिच्छत्त-मास-सम्मत्ता ऽणताणुबन्धिच उगाण कमेण पढमादिगुणठाणत्तिग-बोप्राइगुणठाणदुग-दुइअगुणठ ण-पढमादिगुणठाणदुगेसु धुवसत्ताकत्तणेण सेसुवसंततेसु गुणठणेसु अधुवसत्ताकतेण य तह गराउस्स प्रमत्तसंजदपहुदिप्रजोगिकेवलिपज्जतेसु धुवसत्ताकत्तेण सामित्तबिसेसो णेया दुइप्र-तइप्रगुणठाणदुगे जिण. णामस्स सत्ता ण भोदि, देवभेदसु ओरालियमिस्से य पढमगुणठाणे वि । विउव्वमीसे कम्मे बिदीयगुणटाणे जिरयाउस्स सत्ता गस्थि दुदीयगुणठाणेण सह णिरये अणुप्पादादो। इच्चाइविसेसो सयमुज्झो ।।२२१-२५२।।
॥अथ तृतीयं साधादिद्वारम् ॥ संपदि सादिप्रादिदारं पठदि

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